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ईश्वर एक : नाम अनेक

9 नवम्बर 2015

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संस्कृत या हिंदी वर्णमाला का पहला अक्षर ' अ ' से शुरू होता है. अर्थार्थ, ' अ ' अक्षर के बिना हिंदी वर्णमाला का कोई अर्थ नहीं रह जाता. भगवद्गीता पुष्टि करती है कि विधाता के मुख से निकला पहला अक्षर भी ' अ ' ही था. जिससे इस सृष्टि का सुभारम्भ होता है.

 

ओ३म्/ओंकार (यह ईश्वर का वाचक है) शब्द जो परमेश्वर, एकेश्वर, परब्रह्मा के लिए प्रयोग किया जाता है वह भी ' अ ' अक्षर से ही शुरू होता है. श्री गीता यह भी पुष्टि करती है कि पूरे ब्रहम्मांड में आज भी एक ही ध्वनि ओ३म् (ॐ) के नाम से गूँज रही है.

 

इस्लाम धर्म में विश्वास रखने वाले मुस्लिम भी एक ही परमेश्वर में अटूट विश्वास रखते है जिन्हे ' अल्लाह ' के नाम से जाना जाता है और इनका नाम भी सस्कृत वर्णमाला के पहले अक्षर ' अ ' से ही शुरू होता है.

 

गहन अध्यन करने के पश्चात हमें ज्ञात होता है कि इस पूरी सृष्टी की उत्पत्ति ' अ ' शब्द से ही हुई है, ' अ ' शब्द ही है जो सर्वप्रथम परमेश्वर/भगवान के नाम के लिए प्रयोग किया गया. हमें यह भी ज्ञात होता है कि ' अ ' अक्षर एक ही है और इस पूरे संसार का निर्माण करने वाला भी एक ही है :- परब्रह्मा/परमात्मा जिनका ध्यान और उपासना केवल एक ही शब्द से की जा सकती है वह है " ओ३म् (ॐ) या ओंकार "

 

गुरु नानक जी का शब्द एक ओंकार सतनाम बहुत प्रचलित तथा शत्प्रतिशत सत्य है. एक ओंकार ही सत्य नाम है. राम, कृष्ण सब फलदायी नाम ओंकार पर निहित हैं तथा ओंकार के कारण ही इनका महत्व है. बाँकी नामों को तो हमने बनाया है परंतु ओंकार ही है जो स्वयंभू है तथा हर शब्द इससे ही बना है. हर ध्वनि में ओउ्म शब्द होता है.

 

ईश्वर एक है :- दुनिया के सारे धर्म ग्रन्थ इसकी प्रमाण के साथ पुष्टि करते है. दुनिया में सर्वप्रथम प्राचीन धर्म केवल एक ही है जो वैदिक धर्म, सनातन धर्म, वर्णाश्रम धर्म के नाम से विख्यात है. वैदिक शास्त्र और श्री गीता भी यह पुष्टि करती है कि ईश्वर एक है :- परब्रह्मा, परमात्मा, प्रपितामह जिन्हे संसार के पहले अक्षर ' अ ' से जाना जा सकता है जैसे :-  ' ओ३म् (ॐ) या ओंकार ' ' अल्लाह '

 

सतीश शर्मा

दिल्ली

     
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