shabd-logo

मेरे घर आई एक नन्ही परी

4 नवम्बर 2015

1199 बार देखा गया 1199

क्या कहूं और कहां से शुरुआत करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जब कभी इस विषय में कहीं कुछ पढ़ता हूँ या सुनता हूँ कि बेटी पैदा होने पर उसे गला घोंट के मार दिया गया, या किसी नदी, तालाब या कूएँ में फेंक दिया गया या फिर गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण करवाये जाने पर बेटी है का पता लगते ही उसे भूर्ण हत्या का रूप दे दिया जाता है। तो शर्म आती है मुarticle-imageझे कि मैं एक ऐसे समाज का हिस्सा हूँ जहां लोगों कि ऐसी संकीर्ण मानसिकता है। कैसे ना जाने कहां से लोगों के अंदर ऐसे घिनौने विचार जन्म लेते हैं। जिसके चलते उन मासूम फूलों से भी ज्यादा कोमल बच्चीयों के साथ लोग ऐसा अभद्र, गंदा, घिनौना, अपराध करते हैं। यहाँ अभी इस वक्त यह सब लिखते हुए इस प्रकार के जितने भी शब्द है वो भी मुझे बहुत कम लग रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए जिनकी मानसिकता है कि बेटी उनके सर पर बोझ है इसलिए उसे खत्म कर दो, सच बहुत अफ़सोस होता है। 21वी शताब्दी की बातें करते हैं हम और आज भी इस मानसिकता को ऐसी सोच को खत्म नहीं कर पाये हैं। आखिर कहां जा रहे हैं हम……


जाने क्या मिलता है लोगों को इस तरह का अभद्र पूर्ण व्यवहार करने से और कैसे पत्थर दिल इंसान होते हैं, वह लोग जो इस घिनौने काम को अंजाम देते है। बल्कि ऐसे लोगों को तो इंसान कहना या पत्थर दिल कहना भी इंसान और पत्थर दोनों का ही अपमान होगा। उससे भी ज्यादा बुरा लगता है जब पढ़े लिखे सभ्य परिवारों में भी यही सोच जानने और सुनने में आती है कि जब लोग कहते हैं हमारे लिए बेटा और बेटी दोनों ही बराबर हैं मगर फिर भी यदि पहली बार में बेटा हो जाये तो फिर चिंता नहीं रहती दूसरी बार में बेटी भी हो तो हमे स्वीकार है। क्यों ? क्योंकि दुनिया चाहे चाँद पर ही क्यों ना पहुँच चुकी हो पर सोच तो वही है कि लड़के से ही वंश आगे चलता है लड़की से नहीं। चलिये एक बार को यह बात सच मान भी लेने तो, इससे लड़की का महत्व कम तो नहीं हो जाता , मैं यह नहीं कहता कि इस सब के चलते लड़के का महत्व कम होना चाहिए क्योंकि मैं खुद एक बेटे बाप हूँ लेकिन मैं यह कहना चाहता हूँ कि लड़के को भी वंश आगे बढ़ाने के लिए आगे लड़की की ही जरूरत पड़ेगी ना, तो जब दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं और एक के बिना दूसरा अधूरा है तो फिर लड़की को लड़के की तुलना में महत्व कम क्यों दिया जाता है। एक तरफ तो हम उसी बेटी के माँ रूप अर्थात माँ दुर्गा की पूजा अर्चना करते है। घर की सुख और शांति के लिए कन्या भोज कराते हैं और दूसरी ओर अपने ही घर की कन्या के साथ ऐसा शर्मनाक और अभद्र व्यवहार करते है। आखिर क्यों ?


क्या बिगाड़ा है उस मासूम ने आपका…. क्या आने से पहले उसने कहां था आपसे कि मुझे इस दुनिया में लाओ, नहीं ना। आने वाला बच्चा बेटी है या बेटा जब आपको खुद ही यह बात पता नहीं और ना ही यह बात आपके हाथ में है। तो फिर उस मासूम और बेगुनाह बच्ची को भी सज़ा देने का आपको कोई अधिकार नहीं और सज़ा भी किस बात की, महज़ वो बेटा नहीं बेटी है। अरे लोग यह क्यों नहीं समझते कि अगर उनकी पत्नी नहीं होती तो बेटा या बेटी जिसकी भी उनको चाह है वो उनको मिलता कहां से, अरे अगर उनकी खुद की माँ नहीं होती तो उनका वजूद ही कहां होता। इस पर कुछ लोग कहते हैं वजूद ही नहीं होता तो इच्छा ही नहीं होती। मगर यह मानने को कोई तैयार नहीं कि आखिर बेटा हो या बेटी है तो उनका अपना ही नौ महीने तक जिसके आने का पल-पल बेसबरी से इंतज़ार किया जाता है। जिसके आने से आपके घर को रोशनी मिली आपको जीवन जीने का नया मोड़ मिला, चाहे बेटा हो या बेटी दोनों ने ही आपकी ज़िंदगी को रोशन किया। तो फिर बेटी के प्रति यह भेद-भाव क्यों ?


खैर इस विषय में जितना भी कहां जाये वो कम ही होगा और ऐसे लोगों को जितना भी समझा जाये वो रहेंगे “कुत्ते की दुम ही जो बारह साल नली में डाले रहने के बावजूद भी कभी सीधी नहीं होती” वैसे तो इस विषय में कोई गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है और इस विषय पर सामूहिक रूप से चर्चा होनी चाहिए और कोई ठोस निर्णय निकालना चाहिए। लेकिन फिर भी जब कभी इस विषय की ओर कोई अच्छा प्रयास किया जाता है तो जान कर ख़ुशी होती है और अच्छा भी लगता है, परिणाम भले ही देर से निकले मगर प्रयास करते रहना और प्रयासों का होते रहना भी जरूरी है। शायद इन अक्ल के अंधों को थोड़ी सी अक्ल, ज्ञान और समझदारी की रोशनी मिल जाये और यह सही-गलत के भेद को पहचान सकें। ऐसा ही एक प्रयास भोपाल शहर में बेटी बचाओ आंदोलन के तहत किया गया, मुझे सचमुच में बहुत सराहनीय लगा। उन्होने एक अभियान शुरू किया है जिसके माध्यम से जनता तक यह संदेश पहुंचाने का प्रयास किया है “बेटी क्यों नहीं” शायद ऐसे प्रयास ही ज्यादा नहीं तो कम से कम कुछ लोगों की आँखें तो खोल ही सकते हैं। आज हमारे देश में बेटियों की जो हालत है जिसके चलते भूर्ण हत्या जैसे मामले आए दिन अखबारों में पढ़ने को मिलने लगे हैं शायद इन प्रयासों से हम उन दरों में कुछ हद तक कटौती कर सकें और इन प्रयासों के माध्यम से ही कुछ उन नन्ही बेजान कलियों की आत्मा को शांति और सुकून पहुंचा सकें जो खिलने से पहले ही अपनी ही ज़मीन से उखाड़ के फेंक दी गई।


अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा जैसा कि मैंने ऊपर भी कहां है कि ऐसे प्रयास होते रहना चाहिए और जो लोग इस विषय में नाममात्र की भी ऐसी या इस प्रकार की सोच रखते हैं कि बेटी बोझ है बेटा कुलदीपक उन सभी से मेरा अनुरोध है “जागो सोने वालों” बेटा हो या बेटी, है तो इंसान की ही संतान और भगवान की देन इसलिए दोनों को एक समान मानो और दोनों का ही तहे दिल, से खुले दिमाग और खुले मन से स्वागत करो और बस यही कामना करो की बेटी हो या बेटा दोनों ही स्वस्थ हों।

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अत्यंत सटीक एवं सार्थक लेख !

4 नवम्बर 2015

10
रचनाएँ
indianauthor
0.0
भारतवर्ष-हिन्दुस्तान-इंडिया
1

मेरे घर आई एक नन्ही परी

4 नवम्बर 2015
0
2
1

क्या कहूं और कहां से शुरुआत करूँ कुछ समझ में नहीं आ रहा है। जब कभी इस विषय में कहीं कुछ पढ़ता हूँ या सुनता हूँ कि बेटी पैदा होने पर उसे गला घोंट के मार दिया गया, या किसी नदी, तालाब या कूएँ में फेंक दिया गया या फिर गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण करवाये जाने पर बेटी है का पता लगते ही उसे भूर्ण हत्या का

2

अमर पुरुष बन गया है भ्रष्टाचार

4 नवम्बर 2015
0
4
3

भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा रहा है जिसने भारत् के हर निवासी को ‘एक’ कर दिया है। हालांकि, भ्रष्टाचार के लिए कौन जिम्मेदार है, यह एक बह्स का मुद्दा बना हुआ हैं इसके लिए अक्सर हम और हमारी जनता के द्वारा  राजनेताओं और नौकरशाहों पर उंगली उठना बहुत आसान है। लेकिन क्या घूस देकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले

3

मृत-शरीर : अंतिम संस्कार

4 नवम्बर 2015
0
3
1

वैदिक शास्त्रो अनुसार, सनातन-धर्म में १६ संस्कारों का अत्यंत महत्व है ये अभी मनुष्य के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते है.  अंतिम संस्कार १६ संस्कारों में आखरी संस्कार होता है. इस संस्कार का पालन वेदों और शाश्त्रों में वर्णित नियमों के अनुसार जीव की मृत्यु उपरान्त किया जाता है ताकि जीव-आत्मा को इस भौ

4

एक प्रश्न :-

5 नवम्बर 2015
0
1
0

एक प्रश्न :- इस धरती पर उस प्राचीन धार्मिक पुस्तक ( ग्रन्थ ) का नाम बताइये जो इस संसार में एक ही ' ईश्वर ' होने का दावा करती है ? विकल्प:- १. पवित्र कुरान, २. पवित्र भगवत गीता, ३. पवित्र बाइबिल, ४. इनमे से कोई नहीं अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करके सही उत्तर अवश्य दे. 

5

ईश्वर : ब्रह्म : परमेश्वर : परमात्मा : विधाता : भगवान : अल्लाह : ख़ुदा : गॉड

6 नवम्बर 2015
0
6
2

ब्रह्म हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्म ही परम तत्त्व है (इसे त्रिमूर्ति के देवता ब्रह्मा से भ्रमित न करें)। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति होती है और विश्व नष्ट होने पर उसी में विलीन हो जाता है। ब्रह्म एक और सिर्फ़ एक ही है। वो विश्वात

6

क्या है स्वाइन फ्लू ?

6 नवम्बर 2015
0
5
0

स्वाइन फ्लू एक बार फिर देश में पांव पसार रहा है। फ्लू से डरने के बजाय जरूरत इसके लक्षणों के बारे में जानने और सावधानी बरतने की है। आइए जानें स्वाइन फ्लू से सेफ्टी के तमाम पहलुओं के बारे में :क्या है स्वाइन फ्लूस्वाइन फ्लू श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारी है, जो ए टाइप के इनफ्लुएंजा वायरस से होती है। यह व

7

शैतानी जीव, रहस्यमय प्राणियों का अनसुलझा सच

7 नवम्बर 2015
0
5
0

जब भी रहस्यमय प्राणियों का जिक्र होता है तो हमारी सोच सिर्फ और सिर्फ एलियन्स पर आकर रुक जाती है। लेकिन आपको यह भी जान लेना चाहिए कि एलियन्स का पृथ्वी पर आना-जाना एक सच हो सकता है लेकिन उसके साथ ही एक बड़ा सच यह भी है कि यहां कुछ ऐसे रहस्यमयी जीवों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, जिन्हें आप एलियन क

8

सपनों से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य

7 नवम्बर 2015
0
7
0

जागती आंखों के सपनों में बारे में तो पुख्ता तौर पर स्पष्ट नहीं किया जा सकता लेकिन बंद आंखों से सपने तो हम सभी देखते हैं। अजीब-अजीब टाइप के सपने हमें अकसर परेशान करते हैं, इनमें से कुछ सपने ऐसे होते हैं जिन्हें हम अकसर देखना चाहते हैं तो कुछ ऐसे होते हैं जो नींद में भी डराकर चले जाते हैं। इसके बाद तो

9

ईश्वर एक : नाम अनेक

9 नवम्बर 2015
0
0
0

संस्कृत या हिंदी वर्णमाला का पहला अक्षर ' अ ' से शुरू होता है.अर्थार्थ, ' अ ' अक्षर के बिना हिंदी वर्णमाला का कोई अर्थ नहीं रह जाता. भगवद्गीतापुष्टि करती है कि विधाता के मुख से निकला पहला अक्षर भी ' अ ' ही था. जिससे इस सृष्टिका सुभारम्भ होता है.  ओ३म्/ओंकार (यह ईश्वर का वाचक है) शब्द जो परमेश्वर, एक

10

आतंकी हिंसा

20 नवम्बर 2015
0
4
0

श्रीमदभगवत गीता :- जो मनुष्य मांस का सेवन करता है वह मनुष्य आसुरी/राक्षस समुदाय से सम्बन्ध रखता, उस मनुष्य के ह्रदय में किसी भी जीव के प्रति दया-भाव ना के बराबर होती है, वह मनुष्य हिंसक प्रवर्ति का बन जाता है और वह किसी भी जीव के प्रति हिंसात्मक रवैया अपनाने में नहीं झिजकता. आतंकवाद जैसा शैतान आज पू

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए