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इतिहासवाद का वैचारिक दृष्टिकोण

20 जून 2024

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मनुष्य सदैव अतीत से प्रभावित होता है। वर्तमान की समस्याओं को हल करने के लिए भी उनकी उत्पत्ति के कारणों को जानना आवश्यक है जो कि अतीत के गर्भ में निहित है। इसी विचार ने मनुष्य के हृदय में नवीन चेतना और उत्कंठा जाग्रत कर दी और उसने वर्तमान के संदर्भ में स्वयं को समझने के लिए अतीत का विभिन्न कोणों से अवलोकन करना प्रारंभ किया। पूर्व में प्रचलित दैवी योजना सिद्धांत के अनुसार मध्ययुगीन यूरोपीय इतिहासकारों का मत था कि मानव का जीवन एक दैवी परियोजना के अनुसार चलायमान है और इसका ज्ञान प्राप्त करना ही इतिहासकार का उद्देश्य है।एक विद्वान का कथन है कि इतिहासवाद गतिशील मनुष्य के सामाजिक विकास की प्रवृत्तियों के अध्ययन के रूप में उदित हुआ।२०वी शताब्दी के दार्शनिक कार्ल आर पॉपर ने अपनी पुस्तक इतिहासवाद की दरिद्रता में इतिहास को दुखद और उत्पीड़क घटनाओं से भरा हुआ बताया। उनके अनुसार प्रथम विश्व युद्ध के कारण 1920-30 वर्ष तक जिन देशों आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा उसके कारण असंख्य लोग समय से पहले ही काल में समा गए। क्या इसे कोई भी बुद्धिमान मनुष्य मानव समाज के विकास की ओर झुकाव के रूप में स्वीकार करेगा। यहूदियों व अरबों के मध्य संघर्ष, अश्वेतो पर श्वेतो के अत्याचार क्या इसे हम मानव समाज का विकसित रूप स्वीकार सकते है। इस कारण से उन्हें इन घटनाओं को इतिहासवाद की दरिद्रता कहने पर मजबूर होना पड़ा। इसी प्रकार इतिहास के तथ्यों के अनुमान और तर्क पर आधारित होना, इतिहास के वर्णन में नवीनता व जटिलता, भविष्यवाणी की असफलता जैसे कारणों से निराशावादी इतिहासकार इतिहास को अनुपयोगी मानते है। उनके अनुसार इतिहास में शिक्षा का कोई तत्व नहीं है। यदि मनुष्य इतिहास से कुछ सीखता होता तो अवश्य द्वितीय विश्वयुद्ध न होता। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ई एच कार ने लिखा कि पॉपर जिन बातों को पसंद नही करता उन्हें इतिहासवाद की श्रेणी में रखता है। कार्ल मार्क के अनुसार संसार में जड़ चेतन सभी कुछ संघर्ष में लीन है और इसी संघर्ष के फलस्वरूप पुरातन का स्थान नवीनता ने ग्रहण किया। टायनबी के अनुसार एक समाज या संस्कृति के नष्ट होने की स्थिति में दूसरा समाज और संस्कृति उसका स्थान ग्रहण करती है। अबुल फजल इतिहास की तुलना औषधालय से करता है जहां रोगी मनुष्य को अपने दुख और उदासी के जीवन से उभरने  के लिए औषधि मिलती है। इतिहासकार ई एच कार के अनुसार जीवन और वास्तविकता परिवर्तन की भावना के अतिरिक्त और कुछ नही है तथा वास्तविक ज्ञान विज्ञान के अलावा केवल इतिहास के जानकारी से प्राप्त होता है। प्रकृति की किसी वस्तु का समुचित ज्ञान प्राप्त करना इतिहासवाद है और साथ ही हम उस भूमिका को समझे जिसे वह अन्य क्षेत्रों में परिणत करता है। यह क्षेत्र सामाजिक,राजनीतिक और आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े हुए है।

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