शीर्षक - दिव्या (भाग - 3)
अभी तक आपने पढ़ा - दिव्या बचपन से ही मानसिक कठिनाई से गुजर रही है... आनंद के दोस्त राघव दिव्या के उपचार का बीड़ा उठाते हैं... साथ ही दवाइयाँ शुरू करवाते हैं..
अब आगे
राघव अब अधिक से अधिक समय दिव्या के साथ गुजारने लगते हैं। स्कूल पहुँचाने और लाने की ड्यूटी खुद ही करने लगे ..जिससे पल पल के हाव - भाव को बारीकी से पढ़ सके.. किस स्थिति का कैसे आकलन करती है। सारी परिस्थितियों से अवगत होने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुँचना चाहते थे राघव। उनके दिमाग में क्या चल रहा है.. राघव ने अभी तक किसी से शेयर नहीं किया था। लेकिन मानसिक रूप से दिव्या को हर तरह के उपचार के लिए तैयार भी करना चाहते थे।
समय शनैः शनैः गुजर रहा था.. एक दिन स्कूल में किसी चर्चा के तहत टीचर समाजशास्त्र में पौराणिक कथा का वर्णन करते हुए राजाओं के अंतःपुर और मुगलों के हरम के बारे में बता रही होती है... जिसे सुनते सुनते दिव्या जड़ हो जाती है। उसे देखकर ऐसा लग रहा था.. जैसे वहाँ होकर भी वहाँ नहीं है। टीचर के बिल्कुल सामने बैठी थी दिव्या.. जिससे टीचर की सीधी नजर दिव्या पर पड़ती है... देखते ही उन्हें लगता है.. भले ही दिव्या की आँखें खुली हो... लेकिन वो चेतनाशून्य है....दिव्या की प्रतिक्रिया देखने के लिए टीचर दिव्या के बगल में जाकर खड़ी होती हैं.. दिव्या कोई प्रतिक्रिया नहीं देती है.. बिल्कुल उसी अवस्था में निश्चल बैठी रहती है।
टीचर - (दिव्या को कंधे से थामते हुए) दिव्या.. दिव्या...
दिव्या एक चीख के साथ बेहोश हो जाती है...विद्यालय में उसकी इस स्थिति से सभी भिज्ञ थे.... लेकिन देखा नहीं था किसी ने अभी तक।
टीचर एक बच्चे से पानी लाने कह.. दूसरे को प्रिन्सिपल को सूचित करने भेजती है।
दिव्या को सिक रुम में ले जाया जाता है.. साथ ही आनंद को भी सूचित कर बुला लिया जाता है। स्कूल में इससे पहले दिव्या के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था... इसीलिए सारे स्टाफ और बच्चे दिव्या की स्थिति देखकर डरे हुए थे।
आनंद चंद्रिका और राघव के साथ स्कूल पहुंचते हैं। तब तक दिव्या को होश आ जाता है.. लेकिन संज्ञाशून्य स्थिति में थी। चंद्रिका को सामने देखते ही फूट फूट कर रोने लगी...
चंद्रिका - (दिव्या को अपने में समेटते हुए) क्या हुआ मेरी बच्ची को... किसी ने कुछ कहा।
दिव्या - पता नहीं माँ... बस रोने का मन हो रहा है.. मुझे मंदिर ले चलो माँ।
राघव - (आनंद से) तुम दोनों दिव्या को लेकर मंदिर चलो.. मैं बाद में आऊँगा...मैं टीचर्स और बच्चों से स्थिति की जानकारी लूँगा।
आनंद - ठीक है.. चलो चंद्रिका.. चलो बेटा...
वहाँ से सीधे दिव्या को लेकर घर के बगल वाले देवी मंदिर में जाते हैं... दिव्या देवी माँ के चरणों में बैठकर रोने लगती है..रोते रोते ही ध्यान में चली जाती है।
अब उसके चेहरे पर धीरे धीरे शांति और मुस्कान लौटने लगती है।
चंद्रिका और आनंद उसके चेहरे के बदलते भाव देखकर आश्वस्त होते हैं।
लगभग दो घंटे दिव्या वहाँ उसी स्थिति में रहती है... जब उसके चेहरे पर पूर्णतः रौनक लौट आती है.. तब वो अपनी आँखें खोलती है।
चंद्रिका - देवी माँ को प्रणाम कर दिव्या से घर चलने के लिए पूछती है...
चंद्रिका - बेटा घर चलें कि थोड़ी देर और बैठना चाहोगी...
दिव्या - घर चलते हैं माँ...
चंद्रिका - दादी भी इंतजार कर रही हैं...
तीनों गाड़ी में बैठते हैं... आनंद गाड़ी स्टार्ट करते हैं..
घर पहुंच कर देखती है तो दादी दरवाजे पर ही उनलोगों का इंतजार कर रही थी...
दिव्या - (दादी के गले में झूलते हुए) दादी दरवाजे पर क्या कर रही हैं।
दादी - अपनी लाडो का इंतजार...
दिव्या - बहुत भूख लगी है दादी... मैं फ्रेश होकर आती हूँ... हम सब एक साथ लंच करेंगे।
दादी - आज मैंने लंच बनाया है.. वो भी अपनी लाडो के पसंद का..
दिव्या - अभी आती हूँ दादी.. कहकर अंदर चली जाती है..
दादी - ठीक है बेटा...
चंद्रिका - चलिए माँ अंदर बैठिए.. जाने कब से आप यहाँ बैठी हैं..
माँ - क्या करती बेटा.. दिल को चैन नहीं मिल रहा था..
आनंद जो अभी तक चुप चुप थे... चिंतित स्वर में बोलते हैं..
आनंद - माँ.. एक चीज़ जो हमेशा मुझे परेशान करती है... इतना सब कुछ होने के बाद जब दिव्या होश में आती है.. तो कभी ये जानने की कोशिश नहीं करती है कि क्या हुआ था उसे... क्या वो भूल जाती है या अनभिज्ञता दर्शाने की कोशिश करती है।
माँ - ऐसा तो उसके बचपन से ही है आनंद...
आनंद - कभी कभी लगता है.. ये इसकी शांति किसी तूफान की सूचक तो नहीं है।
माँ - देवी माँ पर भरोसा रख.. उन्होंने राघव को भेजा है.. सब ठीक होगा..
आनंद - हाँ माँ.. उन्हीं पर भरोसा है...
अब तक दिव्या भी आ जाती है और चंद्रिका टेबल पर खाना भी लगा देती है।
आनंद - तुम लोग शुरू करो.. पाँच मिनट में आता हूँ...
चंद्रिका दिव्या और सासु माँ के प्लेट में खाना सर्व करती है..
दिव्या - बैठो ना माँ.. सब साथ ही खाएंगे...
चंद्रिका.. जिसके चेहरे पर अभी तक चिंता की रेखाएँ परिलक्षित थी.. बेटी के कहने पर मुस्कुराती हुई बैठ जाती है।
चंद्रिका - दिव्या.. बेटा.. एक बात बताओ..
दिव्या - जी माँ...
चंद्रिका - बेटा.. इतनी देर ध्यान में बैठी थी तुम.. तो...
दिव्या - तो माँ... देवी माँ मुझे बता रही थी कि मेरा जन्म किसी विशेष कार्य के लिए हुआ है.. मुझे औरों का जीवन सँवारना है।
चंद्रिका - ये क्या कह रही हो बेटी...
दिव्या - सही कह रही हूँ माँ...
दिव्या की दादी - वो विशेष कार्य क्या है बेटा...
दिव्या - मैंने भी पूछा देवी माँ से... उन्होंने कहा.. तुम्हें स्वयम् ज्ञात करना होगा।
आनंद जो कि आकर सारी बात सुन रहे थे...माहौल को हल्का करने के लिए...
आनंद - वाह माँ... आपने कहा दिव्या के पसंद का खाना बना है.. पर सब कुछ तो आपने अपने बेटे के पसंद का बनाया है...देख लो दिव्या आज भी पोती से ज्यादा बेटे से प्यार करती हैं तुम्हारी दादी।
आनंद की बात पर हँसते हुए सब खाने का आनंद लेने लगते हैं...
उधर स्कूल से आकर राघव अपने घर जाता है.. रिया भी अस्पताल से आ गई थी... अभी तक उसे स्कूल में हुई घटना के बारे में पता नहीं था।
राघव आकर सीधा अपने कमरे में चला जाता है... उसे परेशान देखकर रिया भी पीछे- पीछे कमरे में पहुँचती है.. राघव दिव्या की मेडिकल फाइल्स निकाल रहा था।
रिया - क्या बात है राघव.. बहुत परेशान हो और आते ही दिव्या की फाइल्स.. दिव्या ठीक तो है ना...
राघव - दिव्या के स्कूल गया था रिया... उसकी तबियत बिगड़ गई थी वहाँ...
रिया - तुम अकेले गए थे...
राघव - नहीं आनंद और भाभी भी..
रिया - अब कैसी है दिव्या... भाभी ने एक बार बताया था कि स्कूल में ऐसा कभी नहीं हुआ...
राघव - हाँ... उसकी टीचर ने बताया कि वो अंतःपुर और हरम के बारे में बता रही थी उस समय... तभी दिव्या शॉक्ड हुई।
रिया - घर आ गई दिव्या..
राघव - पता नहीं.. मंदिर जाना चाह रही थी स्कूल से.. मैं आनंद से पूछता हूँ..
रिया - ठीक है... तब तक मैं लंच लगाती हूँ... देखूँ विमला ने आज क्या बनाया है...
राघव - हूँ.. आता हूँ मैं बात करके...
राघव - हाँ.. हैलो आनंद.. कहाँ हो तुम लोग.. घर आ गए..
आनंद - हाँ यार.. तू कहाँ है..
राघव - अभी घर आया हूँ.. दिव्या कैसी है... कुछ खाया उसने..
आनंद - ठीक है.. लंच लिया है उसने... सो रही है.. तू भी लंच करके आराम कर।
राघव - हाँ.. शाम में आता हूँ मैं... कुछ जरूरी बात भी करनी है..
आनंद - ठीक है... मुझे भी दिव्या की कुछ बातें परेशान कर रही हैं... शाम में बताता हूँ।
राघव - सब ठीक हो जाएगा...
आनंद - hope so.. लंच कर.. रिया आ गई...
राघव - हाँ.. लंच ही लगा रही है..
आनंद - ठीक है. शाम में मिलते हैं..
राघव - OK bye...
चंद्रिका - क्या कह रहे थे राघव भैया..
आनंद - शाम में आएगा... उसकी बातों से लग रहा था.. किसी नतीजे पर पहुंच गया है।
मैं अस्पताल जा रहा हूँ.. उस समय जल्दबाजी में निकल गया था.. Thank god कि उस समय कोई क्रिटिकल नहीं था अस्पताल में।
चंद्रिका - थोड़ी देर आराम कर लेते...
आनंद - आकर कर लूँगा... निकलता हूँ अभी.. Bye...
क्रमशः...
सादर समीक्षार्थ 🙏 🙏
आरती झा(स्वरचित व मौलिक)
सर्वाधिकार सुरक्षित©®