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दिव्या (भाग - 2)

10 अक्टूबर 2021

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शीर्षक - दिव्या (भाग - 2)

अभी तक आपने पढ़ा - दिव्या बचपन से ही मानसिक कठिनाई से गुजर रही है। आनंद के दोस्त राघव दिव्या के उपचार का बीड़ा उठाते है।

अब आगे -
चंद्रिका वहीं दिव्या के कमरे में ही सो जाती है। खिड़की से छन कर आती धूप की किरणें चंद्रिका के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए उसे नींद से जगाती है। बगल में सोई दिव्या को देखकर चंद्रिका के चेहरे पर मीठी सी मुस्कान आ जाती है..उसके कपाल पर प्यार अंकित कर धीरे से बिछावन छोड़ती है। समय देखती है तो सुबह के छः बजे थे.. 7.30 निकलना होता है स्कूल के लिए..थोड़ी देर बाद जगा दूँगी...सोचकर कमरे से बाहर आ जाती है।
घर के पीछे बने बगीचे से चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ से पूरे घर में मनभावन सरगम बज उठे थे। स्वतः उसके पैर बगीचे की ओर बढ़ जाते हैं.. देखती है दोनों मित्र वहाँ बैठे बातें कर रहे हैं।
आपलोग जगे हुए हैं... चाय लाती हूँ बनाकर.. कहती हुई चन्द्रिका अंदर जाने के लिए मुड़ती है।
राघव - रिया बना रही है भाभी.. आप परेशान ना हो और वही से रिया के मोबाइल पर भाभी के लिए भी चाय लाने को मैसेज कर देता है।
बैठिए भाभी.. मैंने रिया को मैसेज कर दिया है आपके चाय के लिए...राघव कुर्सी देता हुआ चंद्रिका से कहता है।
चंद्रिका - माँ से मिल कर आती हूँ.. अभी तो रामायण पढ़ रही होंगी...
जाकर सासु माँ को सुप्रभात बोल वही बैठ जाती है...
सासु माँ - दिव्या सोई है बहू...
चंद्रिका - हाँ माँ.. थोड़ी देर में उठा दूँगी..
सासु माँ - पहले राघव से विचार कर लेना बहू.. क्या कहता है..
चंद्रिका - जी माँ...
रिया चाय लेकर आ जाती है... Good morning भाभी..
आप तो आज देर तक सोई भाभी.. आज आपकी जगह मैं और माँ टहलने चले गए.. माँ कह रही थी.. 5 बजे उठ जाती है चंद्रिका..
चंद्रिका - हाँ.. आज तो सच में टहलने का समय निकल गया..
रिया - कोई बात नहीं भाभी.. कल से फिर हो जाएगा.. माँ आपकी चाय... भाभी आपकी चाय भी यही दूँ क्या।
सासु माँ - नहीं.. नहीं.. बगीचे में ही पियो तुम लोग.. जाओ बहू।
चंद्रिका और रिया चाय के साथ बगीचे में आ जाती है।
चंद्रिका -(राघव से) दिव्या के स्कूल का समय भी होने वाला है.. भैया स्कूल भेजूं या नहीं??
राघव - बिल्कुल भाभी.. जैसे नॉर्मल रूटीन है.. सब कुछ वैसे ही चलेगा। आज एक घंटे का यूनिवर्सिटी में लेक्चर है... उसके बाद दिव्या के साथ ही पूरा समय देना है। स्कूल से कब तक आ जाती है दिव्या।
चंद्रिका - दो बजे तक..
राघव - बिल्कुल चिंता ना करें आपलोग.. बिल्कुल ठीक हो जाएगी दिव्या।
मैं जगाऊँ उसे..चाय खत्म कर बोलती हुई चंद्रिका दिव्या के कमरे की ओर चली जाती है।
दिव्या के पसंद की अगरबत्ती जला कमरे में रखकर .. दिव्या को जगा कर रसोई में नाश्ता और टिफिन की तैयारी के लिए चली जाती है चंद्रिका। अब तक उसकी हॉउस हेल्पर सुधा आकर रसोई में होने वाले काम शुरू कर चुकी थी।
दिव्या उठकर घर के मंदिर में देवी माँ के सामने नित्य दिन की तरह थोड़ी देर बैठ जाती है.. फिर दादी से और सब से मिलकर तैयार होने लगती है।
रिया और राघव अपने घर प्रस्थान करते हैं.. आनंद दिव्या को पहुँचाने स्कूल जाते हैं।
सास बहू सबके जाने के बाद साथ बैठती हैं...
चंद्रिका - माँ दिव्या की ये प्रॉब्लम खत्म तो हो जाएगी ना..
माँ - चिंता मत करो.. देवी माँ पर भरोसा रखो.. सब ठीक हो जाएगा।
शाम में राघव अपने घर की छत पर दिव्या के साथ बैठा बैठा बातें कर रहा होता है... स्कूल की.. सहेलियों की बातें.. फाइनल एग्जाम की तैयारियाँ।
राघव - सबसे ज्यादा किस काम में मज़ा आता है बेटा तुम्हें।
दिव्या - नृत्य और देवी माँ से बातें करना।
राघव - वाह.. देवी माँ तुमसे बातें करती हैं...
दिव्या - हाँ अंकल.. बचपन से ही।
राघव - ये तो बहुत अच्छी बात है.. और क्या क्या करती हो तुम। कुछ ऐसा जो तुम करना चाहती हो.. तुम्हारे जीवन का ध्येय...
दिव्या - (असहज होकर) नहीं चाचा जी
राघव दिव्या की असहजता समझ जाता है.. बिना आगे कुछ पूछे रिया को आवाज देता है..
बेगम आज हम दोनों को भूखा रहने की सजा मिली है क्या..
खफ़ा खफ़ा से मेरे सनम लगते हैं...
राघव ने गाना शुरू ही किया था कि रिया वेज मंचूरियन और कॉफी लेकर आती है।
रिया - बच्ची के सामने तो लिहाज रख लिया करो..
राघव - बच्ची मेरी खिलखिला रही है और क्या चाहिए।
दिव्या - चाची बहुत ही स्वादिष्ट बने थे.. मेरा स्टडी टाइम हो गया है.. मैं चलती हूँ।
राघव और रिया - Ok बेटा.. फिर मिलते हैं...
दिव्या अपने घर आकर पढ़ाई में लग जाती है...
रिया - राघव क्या बात हुई दिव्या से...
राघव - ज्यादा कुछ नहीं.. लेकिन कुछ तो है जो उसे असहज कर गया.... और दूसरी बात देवी माँ उससे बात करती हैं...let's see.. आगे क्या क्या किया जा सकता है।
ऐसे ही छोटी छोटी मुलाक़ातों से राघव दिव्या से उसके मन की बातें जानने की कोशिश करता रहता है।
एक छुट्टी के दिन राघव और रिया दिव्या के घर नाश्ता ले रहे थे..राघव सबसे लॉन्ग ड्राइव के लिए पूछता है.. किसी ना किसी बहाने से सभी मना कर देते हैं।
राघव - दिव्या.. चलो बेटा.. हम दोनों ही हो आते हैं।
अब दिव्या राघव से खुल गई थी.. एक दोस्त की तरह राघव उसके साथ पेश आता था।
दिव्या - माँ मैं जाऊँ चाचा जी के साथ..
चन्द्रिका - तुम्हारी इच्छा है तो जाओ बेटा.. इसमें पूछना क्या...
दिव्या - मैं तैयार होकर आती हूँ...
चंद्रिका - (चिंतित स्वर में) दिव्या को रास्ते में कोई दिक्कत हुई तो..
राघव - मैं सम्भाल लूँगा भाभी.. आप बेफिक्र रहें।
राघव और दिव्या बहुत दूर निकल जाते हैं... गाँव ही गाँव और हरियाली ही हरियाली नजर आती है... एक जगह ढ़ाबे पर रुक कर दोनों लंच करते हैं।
राघव - घर लौटा जाए या आगे चला जाए...
दिव्या - आगे चलते हैं ना चाचा जी.. बहुत ही सुहाना मौसम है... ये ठंडी ठंडी हवा बहुत ही अच्छी लग रही है।
लौटते हुए रात हो जाती है.. राघव आनंद को कॉल कर देता है कि वो लोग डिनर करते हुए आयेंगे।
उसी ढ़ाबे पर डिनर के लिए दिव्या रुकने बोलती है...
राघव और दिव्या खाने का ऑर्डर कर बातें करने लगते हैं...
सुबह के माहौल और रात के माहौल में दिव्या को बहुत फर्क़ लग रहा था.. वहाँ कुछ अलग ही पहनावे और साज श्रृंगार में चार पाँच लड़कियाँ बैठी थी।
दिव्या खुद ही खुद में बड़बड़ाने लगती है.. जाने क्यूँ बिना मर्जी के कीचड़ में इन्हें धकेल दिया जाता है.. इन लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करने वाले शराफत का मुखौटा लगा दिन के उजाले में इन्हें ही समाज की गंदगी कहते हैं।
राघव बहुत ही ध्यान से उसके बड़बड़ाने को सुन रहा था.. बोलते बोलते ही दिव्या पर जैसे नशा सा छा गया था.. बेहोश हो गई वो। दिव्या के गिरने से पहले ही राघव उसे थाम लेता है और वही बिछी चारपाई पर सुला देता है।
थोड़ी देर बाद और दिनों की तरह दिव्या खुद ही होश में आ जाती है...
राघव - बेटा पानी पी लो.. हम लोग कहीं और डिनर करेंगे..
दिव्या - पर क्यूँ.. मैं चारपाई पर..
राघव - कुछ नहीं.. नींद आ गई थी तुम्हें...
दोनों वहाँ से शहर आकर एक रेस्तरां में डिनर लेते हैं और घर आ जाते हैं।
रिया भी आनंद के यहाँ ही होती है.. दिव्या को पहुँचा कर और आनंद से कल मिलते हैं बोल कर रिया के साथ राघव अपने घर आ जाता है।
दूसरे दिन दिव्या के स्कूल जाने के बाद रिया और राघव आनंद के घर आते हैं और ढ़ाबे पर हुई घटना पर चर्चा करते हैं।
राघव - आनंद मैं स्पष्ट रूप से पूछ रहा हूँ कि घर में कॉल गर्ल्स की जिंदगी की कोई चर्चा होती है क्या.. या कभी कोई मूवी ऐसी तुम लोगों ने देखी हो.. जो इनलोगों के जीवन से जुड़ी हो।
चंद्रिका - नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं होती है और मूवी देखने का कोई खास शौक हममें से किसी को नहीं है।
हाँ लेकिन आनंद याद है आपको.. एक बार न्यूज में किसी बालिका सुधार गृह के बारे में बता रहे थे कि वहाँ रहने वाली लड़कियों के साथ अमानवीय हरकत हुई.. जिससे कइयों ने आत्महत्या किया था...
आनंद की माँ - हाँ.. हाँ.. और दिव्या देखकर बहुत ही ज्यादा तेज तेज चीखने लगी थी... किसी और की गलती की सजा किसी और को मिलती है..हमेशा यही होता रहा है... ऐसा ही कुछ बोलने लगी थी।
आनंद - हाँ राघव और उस दिन दिव्या को सम्भालना मुश्किल हो गया था।
राघव - कहीं ना कहीं इसके तार दिव्या के जीवन से जुड़े हैं...
आनंद - फिर क्या किया जाए राघव...
राघव - योग और ध्यान तो करवा ही रहा हूँ दिव्या से.. अब कुछ दवाइयाँ शुरू करूँगा...स्टेप बाय स्टेप काम करना है मुझे। उसके अवचेतन मन से बातें भी निकाल सकूँ और उसके मन को कोई नुकसान भी ना पहुँचे।
चंद्रिका - जो आपको ठीक लगे भैया... लोग भी तो बहुत बात बनाते हैं दिव्या को लेकर..
रिया - लोगों का क्या है भाभी.. कुछ तो कहेंगे.. आप बिल्कुल परेशान ना हो ... सब ठीक हो जाएगा... देवी माँ का आशीर्वाद.. हम सब की प्रार्थना दिव्या के साथ है।
आनंद की माँ - हाँ बहू.. देवी माँ पर भरोसा रख...
राघव - (एक काग़ज़ आनंद की ओर बढ़ाते हुए) आनंद ये एक महीने की दवाइयों आज से शुरू कर देना... सारी चीजें विस्तार से लिख दी है मैंने... भाभी जैसे जैसे लिखी है..उसी तरह दीजिएगा।
चंद्रिका - (गहरी साँस लेते हुए) ठीक है भैया..
राघव - भाभी उम्मीद रखें.. मजबूत इच्छा शक्ति की मालकिन है हमारी बिटिया... दिमाग पर प्रेशर होते हुए भी उसने खुद को थामा है और एकाग्र रखा है ... बहुत जल्दी सारी बातें बाहर आएंगी.. शाम में आता हूँ मैं.. चलें रिया।
रिया - हाँ चलते हैं...
मुझे भी अस्पताल पहुँचना है... रिया ने घर के पास का ही एक अस्पताल जॉइन कर लिया था

मिलती हूँ भाभी... बिल्कुल भी चिंता मत कीजिएगा... रिया चंद्रिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहती है और राघव के साथ अपने घर के लिए निकल जाती है।

क्रमशः...
सादर समीक्षार्थ 🙏 🙏

आरती झा (स्वरचित व मौलिक)
सर्वाधिकार सुरक्षित © ® 



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