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दिव्या

9 अक्टूबर 2021

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शीर्षक - दिव्या (भाग - 1)

दिव्या...जैसा नाम..वैसी ही देखने में दिव्य...बड़ी बड़ी आँखें.. मुस्कुराता चेहरा..सुतवां नाक..दूध की तरह गोरी. गोल मटोल छोटी तीन साल की दिव्या..मनमोहिनी..जो भी देखता बस बच्ची को देखता रह जाता। माता... पिता...दादी की दुलारी..रोते को हँसा देने वाली..छोटी सी होते हुए भी...और बच्चों की तरह जिद्द करना उसके स्वभाव में था ही नहीं।जो मिल गया..उसी में मन रमा लिया..होश सम्भालते ही घर के मन्दिर में सुबह सुबह जाकर देवी माँ को प्रणाम कर खिलखिलाना उसका नित्य का कार्य था। उसकी दादी हमेशा कहती पिछले जन्म की कोई दिव्यात्मा साध्वी हमारे घर आई है। दिव्या की माँ चन्द्रिका उसके इस स्वभाव से और सासु माँ की बातों से चिंतित हो जाती थी कि कहीं आगे चलकर साध्वी तो नहीं हो जाएगी।
दिव्या के पिता आनंदराय जो कि स्वयं एक चिकित्सक थे और ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे..अपनी पत्नी को धैर्य रखने कहते..जैसी प्रभु लीला होगी.. कहकर हाथ जोड़ देते।
समय अपनी गति से बीत रहा था...दिव्या पाँच साल की होने को आई। उसका एडमिशन एक अच्छे विद्यालय में करा दिया गया। इतनी छोटी सी उम्र से ही उसका झुकाव शास्त्रीय संगीत और नृत्य की ओर था।शास्त्रीय संगीत की धुन कान में जाते ही खुदबखुद नृत्य करने लगती। नृत्य की ओर उसका झुकाव देखते हुए आनंद ने उसे नृत्य की शिक्षा देने का विचार बनाया और शास्त्रीय नृत्य और संगीत का अच्छा सा विद्यालय देखकर  नामांकन करा दिया। जहाँ उसे सप्ताह में दो दिन शनिवार और रविवार को क्लास लेने जाना होता था।
अब वो अपने विद्यालय के साथ संगीत विद्यालय भी जाने लगी। पढ़ने में भी बहुत ज़हीन थी.. जो एक बार समझ लेती उसे भूलती नहीं थी.. ना ही उसे समझाने की जरूरत पड़ती थी। इसी तरह संगीत के गुरु जी जो लय ताल उसे एक बार बता देते.. दुबारा बताने की जरूरत नहीं होती थी। लगता था मानो ये सब उसके लिए नई चीज़ कतई नहीं है..अपने उम्र के बच्चों से बिल्कुल अलग ही थी।
लेकिन उसमें एक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगा..जिसने राय परिवार के माथे पर शिकन ला दिया। दिव्या सोते में चीखने लगती थी। कभी कभी अचानक खेलते खेलते या बैठे बैठे चीखने लगती थी। उसके व्यवहार से लगता कहीं भाग जाना चाहती है.. रोते रोते माँ की गोद में सो जाती। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। जैसे जैसे समय बीत रहा था.. इसमें भी इजाफा हो रहा था। हाँ.. अब ये जरूर होने लगा था..कि आनंद के घर के बगल में जो देवी माँ का मंदिर था..रोते रोते वहाँ चली जाती.. जाकर माँ के सामने ध्यान की मुद्रा में बैठ जाती। थोड़ी देर में ही उसके चेहरे पर मुस्कान खेलने लगती..उसके चेहरे के भाव उस समय ऐसे बदल रहे होते.. जैसे किसी से गिला शिकवा कर रही हो और कोई उसे समझा रहा हो.. संतुष्टि आ जाती दिव्या के चेहरे पर। फिर धीरे धीरे ध्यान से निकल कर घर आकर अपनी माँ की गोद में सिर रखकर सो जाती.. महज सात साल की ही तो उम्र हुई थी दिव्या की अभी।
अब दिव्या दस साल की हो गई थी... नृत्यांगना दिव्या कहलाने लगी थी। राज्य का कोई भी नृत्य से संबंधित अवार्ड नहीं था.. जो उसने नहीं जीता था... उसकी तो जान बसती थी नृत्य में.. पढ़ाई में ज़हीन होने के कारण सोने पे सुहागा वाली बात थी... माता पिता की आज्ञाकारी... दादी की लाडली।
समय के साथ साथ दिव्या 16 साल की हो गई थी.. अब कुछ कुछ नॉर्मल होने लगी थी.. लेकिन हालात तनाव वाले ही थे। एक दिन स्कूल के लिए तैयार होते ही... दिव्या चीखने लगी.. माँ मुझे नहीं करना ये सब.. मैं नहीं जाऊँगी... छोड़ दो मुझे.. चंद्रिका दौड़ कर आई.. रोते रोते चंद्रिका के गले लगकर ही बेहोश हो गई। दिव्या की चीख सुनकर दिव्या की दादी और पापा भागते हुए आए... नजारा देखकर अवाक रह गए।
आनंद दिव्या को गोद में लेकर बिछावन पर सुला देते हैं... चंद्रिका रोने लगती है..
चंद्रिका - क्या हो जाता है मेरी बेटी को... इतनी देर में ही कैसी दिखने लगती है...
दिव्या की दादी - आनंद मुझे तो ये पूर्वजन्म का कुछ साया लगता है...
आनंदराय - कुछ समझ नहीं आता है माँ... डॉक्टर होकर भी मुझसे ये पहेली सुलझ नहीं रही है...
आनंद डॉक्टर होने के नाते ये तो समझ रहे थे कि दिव्या की ये समस्या कहीं ना कहीं मानसिक है.. लेकिन क्या...
चंद्रिका - कुछ तो उपाय होगा.. पूजा पाठ कुछ तो होगा..
दिव्या की दादी - हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे.. पूर्वजन्म की चीजें बच्चों को कुछ समय तक याद रहती हैं.. फिर भूल जाते हैं.. अगर ऐसा कुछ है तो दिव्या भी भूल जाएगी.. तुम चिंता मत करो बहू..
चंद्रिका - लेकिन माँ अब तो दिव्या इतनी बड़ी हो गई है कि पूर्वजन्म से संबंधित कोई बात है तो उसे अब तक भूल जाना चाहिए था..
दिव्या की दादी - सब ठीक हो जाएगा बहू.. चंद्रिका को सांत्वना देकर आँसू पोंछते हुए अपने कमरे में चली जाती हैं..
उस समय चंद्रिका ने कुछ नहीं कहा... माँ का दिल था... जब जब लगता कि अब दिव्या नॉर्मल हो रही है.. बस किसी दिन फिर से वही सब...
चंद्रिका - कुछ कीजिए...दिव्या का जीवन ऐसे कैसे चलेगा..
आनंद - फिर से मनोचिकित्सक से ही बात करता हूँ..
चंद्रिका - इतने दिनों से देश के सारे मनोचिकित्सक को दिखा ही चुके हैं आप.. कोई फायदा तो नहीं हुआ..
आनंद - हूँ.....काम से विराम लेकर बाहर चलते हैं..
चंद्रिका - हाँ... अब ऐसे नहीं देखा जाता मुझसे अपनी बेटी को।
कहाँ किन किन डॉक्टर से संपर्क किया जा सकता है.. इस पर विचार चल ही रहा था। संयोग से आनंद के मित्र देश विदेश के जाने माने मनोचिकित्सक राघव का फोन आ जाता है.. जो पढ़ने के लिए अमेरिका गए थे और वही अपने साथ पढ़ने वाली भारतीय मूल की रिया के साथ शादी कर सेटल हो गए थे। प्रैक्टिस भी कर रहे थे.. साथ ही अपने शोध पत्रों के कारण एक जाना पहचाना नाम थे। वो किसी शोध कार्य हेतु एक साल के लिए भारत आने वाले हैं। रिया स्त्री रोग विशेषज्ञ थी.. छुट्टी लेकर पति के साथ इंडिया आ रही थी।
आनंद और राघव बचपन के दोस्त हैं.. राघव के माता पिता के गुजरने के बाद राघव ने अमेरिका जाने से पहले घर की चाभी आनंद के सुपुर्द किया था।
आनंद ने राघव को आश्वासन दिया कि उनके आने से पहले घर की सारी व्यवस्था करवा देंगे.. जिससे वो और उनकी पत्नी आराम से रह सकें। आनंद ने उन्हें खुद के घर पर भी रहने को आमंत्रित किया.. राघव सालों बाद आ रहे थे.. तो खुद के घर ही जाना चाहते थे।
आनंद राघव से बात कर बहुत खुश होकर अपनी पत्नी को आवाज लगाते हैं.. जो कि डिनर के बाद रसोई साफ़ करवा रही होती है..
चंद्रिका - कुछ चाहिए था क्या..
आनंद - चंदु अब हमें दिव्या को लेकर कहीं जाने की जरूरत नहीं है... देवी माँ अपनी बच्ची के लिए स्वयं ही डाक्टर भेज रही हैं।
चंद्रिका - मैं कुछ समझी नहीं!!
आनंद - 10-15 दिन में राघव इंडिया आ रहा है... और वो खुद के घर पर ही रहना चाहता है।
चंद्रिका - सच... उनसे ज्यादा योग्य डॉक्टर कौन हो सकता है.. देवी माँ मेरी बच्ची को ठीक कर दें... आपने उनलोगों से हमारे घर ही रहने क्यूँ नहीं कहा।
आनंद - कहा था.. दोनों अपने निवास पर ही रहना चाहते हैं.. सही ही है.. उस घर से राघव की कितनी सारी यादें भी तो जुड़ी हैं।
चंद्रिका - हाँ ये तो है.. मैं माँ को बता कर आती हूँ.. खुश हो जाएंगी सुनकर.. आजकल दिव्या को लेकर बहुत चिंतित रहने लगी हैं।
कहकर चंद्रिका चली जाती है... आनंद.. अपने और राघव के बचपने को याद करते करते सो जाते हैं।
राघव के घर को फूलों से इस तरह से सजाया गया था.. जैसे नई नवेली दुल्हन विदा होकर आ रही हो।
साथ ही "फूलों की रानी.. बहारों की मल्लिका" पूरे जोर शोर से बजाया जा रहा था।
खाने की खुशबू पूरे घर में फैली हुई थी...
शाम के 6 बजे राघव के घर के दरवाजे पर एक गाड़ी रुकती है.. जोकि आनंद की होती है... आनंद के साथ राघव उतरता है... घर की सजावट देख मंत्रमुग्ध हो जाता है।
रिया भी उतरने लगती है...
आनंद - नहीं नहीं भाभी.. आप अभी नहीं थोड़ी देर बाद उतरेंगी।
सुनकर रिया गाड़ी के अंदर ही बैठी रहती है....
राघव - इतनी सुन्दर सजावट..
आनंद - तू हमेशा कहा करता था ना कि जब अपनी दुल्हन लाऊँगा तो पूरा घर सिर्फ फूलों से सजेगा और सिर्फ एक ही गाना बजेगा... फूलों की रानी.. बहारों की मल्लिका।
राघव - तुझे याद था ये सब..
आनंद - दिन में 10 बार तो कम से कम तू ये बोलता था.. मैं क्या कोई नहीं भूल सकता था...
इस बात पर दोनों दोस्त हँसने लगते हैं.. तभी आनंद की माँ, चंद्रिका और दिव्या.. दीपों से सजी थाल लेकर आती हैं... राघव चंद्रिका और दिव्या को हैलो बोलता हुआ.. आनंद की माँ के चरण स्पर्श के लिए झुकता है।
चंद्रिका बहुत प्यार से रिया को गाड़ी से उतारती है.. और आनंद की माँ.. राघव और रिया की आरती कर टीका लगाती हैं.. फिर दोनों को घर के अंदर आने कहती हैं।
चंद्रिका - रिया.. इससे मिलो.. ये है तुम्हारी हॉउस हेल्पर विमला... बहुत साफ़ सफाई से सारा काम करती है और खाना तो बहुत स्वाद का बनाती है।
रिया उसे देखकर मुस्कुराती है..
राघव - ओह.. हो.. खाने की इतनी सुन्दर खुशबू.. कहीं भी रह ले यार.. अपने देश की.. अपनी मिट्टी की.. अपने घर की बात ही निराली होती है।
आनंद - फिर भी तेरा मन यहाँ लगता नहीं... लौटना तो वही है..
राघव - कर्मभूमि है मेरी वो यार... रिया का भी सारा काम वही है।

इतने में चंद्रिका सबके लिए चाय ले आती है और रिया दिव्या के साथ ही बैठकर बातें करने लगती है।

आंनद की माँ - लगता है सारी बातें आज ही कर लोगे तुम लोग .. राघव और रिया थक गए होंगे।

राघव और रिया से - जाओ बच्चों तुम दोनों फ्रेश हो जाओ.. तब तक मैं और चन्द्रिका खाना लगा देते हैं।

दिव्या से - जा चाची को वाशरूम दिखा दे.. 

दिव्या - जी दादी.. कहकर रिया के साथ चली जाती है 

चंद्रिका - भैया आप भी स्नान कर लीजिए... कहकर रसोई का काम देखने उठ जाती है।

राघव - आनंद दिव्या किस क्लास में है... बहुत प्यारी बच्ची है.. 

आनंद - (थोड़ा असहज होते हुए) 11th में है... 

राघव - कोई प्रॉब्लम है क्या.. तेरे माथे पर अचानक चिंता की रेखाएँ झलकने लगी।

आनंद - नहीं कुछ नहीं.. चल फ्रेश हो ले.. फिर खाना खाते हैं.. तेरे इंतजार में मैंने भी सुबह से ठीक से नहीं खाया है।

राघव - ठीक है.. बोलकर अपने बेडरूम की तरफ बैठ जाता है.. 

रिया स्नान ध्यान करके दिव्या के साथ रसोई की तरफ बढ़ती है..दोनों के बातें करने और खिलखिलाने की आवाज़ से आनंद की माँ रसोई से बाहर आ जाती हैं।

आनंद की माँ - रिया बेटा.. कल तुम्हारी पहली रसोई की रस्म करेंगे... फिर अपना घर अपने हाथों से संभालना।

चन्द्रिका - (हँसते हुए) रिया अब तो तुम भी सासु माँ की लाडली बहू हो गई .. और अपनी सासु माँ की गलबहियाँ करते हुए.. मेरी प्यारी देवरानी भी।

रिया सारा संकोच छोड़ आकर दोनों के गले लग जाती है... पूरा परिवार मिल गया मुझे।

दिव्या - मैं भी हूँ.. बोल कर तीनों के गले लग जाती है..

दादी - तू तो हमारी परी है... 

राघव - आपलोगों के लाड़ प्यार में 9 बजने को आ गए... हम गरीबों को खाना खिला दो माते।

आनंद की माँ - बदला नहीं बिल्कुल तू...

चन्द्रिका - वहाँ भी ऐसे ही करते हैं रिया या अपने देश की मिट्टी का असर है।

रिया - मत पूछिए भाभी... कभी कभी तो राघव की बातें मेरे सिर पर से निकल जाती हैं... तब कहते हैं आनंद होता तो झट से समझ जाता।

बहुत याद करते हैं आपलोगों को... 

चंद्रिका - फिर भी इतना समय ले लिया आने में... 

रिया - क्या करें भाभी... काम छोड़कर आना नहीं हो सका... अभी शोध पत्र से ज्यादा हमलोगों को इंडिया आने और आपलोगों से मिलने का आकर्षण खींच लाया।

चन्द्रिका - (दिव्या से) पापा और चाचा को बुला लाओ.. तुम सब

खाना लो।

माँ आप भी आ जाइए... सब आ जाते हैं.. 

राघव - भाभी आप दोनों भी हमारे साथ बैठ कर खाइए... 

रिया - आप लोग के बाद मैं और भाभी आराम से बातें करते हुए खाएंगे... 

राघव - जी मैडम.. आपकी आज्ञा सिर माथे पर.. 

आनंद को आँख मारते हुए... कौन बेलन खाए.. कल से रसोई यही सम्भालेगी।

सब हँसते हुए बैठ जाते हैं... 

राघव - पर एक बात सुन लीजिए माते.. हाथ जोड़कर झुकते हुए.. अगर आपकी बहू ने खाना स्वादिष्ट नहीं बनाया तो आपके हाथ का बना ही खाऊँगा।

चंद्रिका - कोई बात नहीं भैया.. रसोई में कमाल आप भी दिखा सकते हैं।

आनंद की माँ - (मुस्कुराते हुए) एक दूसरे की टाँग खिंचाई हो गई हो तो खाना खा लिया जाए।

बहू सर्व करो... सबका खाना हो गया.. विमला भी सब काम निपटा कर घर चली गई।

दिव्या राघव और रिया से मिलकर बहुत खुश थी... जब तक सो नहीं गई.. उनकी ही बातें करती रही।

सब अपने अपने काम में लग गए थे.. मिलना मिलाना भी होता रहता था।

दिव्या के स्कूल में वार्षिकोत्सव था.. जिसके लिए अपने मम्मी, पापा और दादी के साथ राघव और रिया को भी आमंत्रित करती है।

रविवार होने के कारण सब फ्री थे.. सबने हामी भरी .. रिया बहुत खुश थी।

वार्षिकोत्सव में राधा कृष्ण की रास लीला दिव्या को अकेले करते देख... साथ ही उसके चेहरे पर उभरते भाव देख राघव और रिया बहुत प्रभावित होते हैं।

सब वार्षिकोत्सव के बाद शहर के प्रसिद्ध रेस्तरां में डिनर लेते हैं... 

राघव - दिव्या बेटा तो अद्भुत नृत्य करती है... लगा ही नहीं कि अकेला कोई इंसान रासलीला कर रहा हो...हाव भाव भी मनमोहक थे... इतने दिनों से बताया क्यूँ नहीं था तुम लोगों ने.. हमारी बिटिया इतनी प्रतिभाशाली है।

रिया - कैसे पूरा मंच तुम्हारे अकेले थिरकते कदमों ने सम्भाल लिया.. वो भी रासलीला... 

दिव्या - (शर्माते हुए) चाची पता नहीं कैसे खुद ही हो जाता है... 

तब तक खाना आ जाता है.. सब डिनर कर अपनी अपनी गाड़ी में बैठ जाते हैं... दिव्या राघव और रिया के साथ उनकी गाड़ी में बैठती है।

रिया और दिव्या पीछे बैठती हैं... और दोनों के बीच ढ़ेर सारी बातों का सिलसिला निकल जाता है।

अचानक दिव्या चीखने लगती है... पसंद है ये मुझे..पर अपनी इच्छा से करुँगी... ज़बरदस्ती मत करो।

राघव हड़बड़ा कर गाड़ी साइड में लगाते हैं.. राघव को गाड़ी साइड लेता देख पीछे से आते हुए आनंद भी गाड़ी साइड में लेते हैं।

दिव्या की चीख सुन चंद्रिका जल्दी से आती है... अपनी माँ को देख और गले लग दिव्या बेहोश हो जाती है... राघव की गाड़ी में ही चंद्रिका दिव्या को अपनी गोद में लिटा कर बैठ जाती है।

दिव्या की स्थिति देख माहौल तनावपूर्ण हो जाता है... 

घर पहुंचते पहुंचते दिव्या होश में आ जाती है और नॉर्मल व्यवहार करने लगती है।

आज दिव्या की स्थिति से हतप्रभ राघव और रिया आनंद के घर ही रुक जाते हैं.. चंद्रिका दिव्या को उसके कमरे में सुला आती है.. तब तक रिया सबके लिए पानी और कॉफी बना कर ले आती है।

राघव - ये क्या था आनंद... दिव्या को अचानक क्या हो गया... 

रिया - 2 महीने होने को आए हमारे यहाँ आए.. 

दिव्या को कभी ऐसे नहीं देखा... पहले भी ऐसा होता रहा है या आज ही हुआ... 

चंद्रिका - (रोने लगती है) पाँच साल की उम्र से ही ऐसा हो रहा है... 

राघव - आनंद.. तूने कभी बताया नहीं.. यार डॉक्टर होकर कैसे निश्चिंत रह सकता है ऐसी स्थिति में। 

आनंद - कई मनोचिकित्सक को दिखाया.. किसी ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया।

हम सोच ही रहे थे कि अब कहीं बाहर जाकर दिखाए.. तब तक तेरे आने की खबर हुई।

रिया - भाभी आजतक बताया क्यूँ नहीं... 

आनंद - राघव की मसरूफियत देखकर लगा सुनकर इसके काम पर असर ना पड़े।

राघव - ओह... एक पल में पराया कर दिया तुमने.. अपनी बेटी से बढ़कर कोई काम है क्या।

आनंद की माँ से - माते.. आप तो बताती.. बच्ची इतने कष्ट में है.. 

रिया - जो हुआ सो हुआ... आगे क्या करना है राघव.. इस पर फोकस करो।

राघव - हाँ.. अब उपचार कल से ही शुरू कर दूँगा मैं... 

कितने दिनों बाद हुआ ऐसे... और पहले कितने दिनों पर होता था... 

चंद्रिका - सारी स्थिति स्पष्ट बताती है और बताती है कि इस बार 

लगभग 3 महीने बाद ऐसा हुआ.. 

राघव - कोई बात नहीं... मेरी पूरी कोशिश होगी इसके तह में जाकर दिव्या को पूर्णतः नॉर्मल कर सकूँ... 

भाभी दिव्या के डाक्टर्स की फाइल.. सारी केस हिस्ट्री दे दीजिए मुझे...पहले रीड कर लेता हूँ मैं।

आनंद की माँ - (रुंधे गले से) अभी तो सब आराम करो.. सुबह देखना जो देखना हो.. बहू दोनों के लिए कमरा तैयार कर दिया।

चंद्रिका - जी माँ.. चलो रिया कपड़े बदल लो और तुम लोग भी आराम करो।

आनंद के रात के कपड़े लाकर राघव को देती है.. भैया आप भी बदल कर आराम कीजिए।

राघव - हाँ भाभी.. तब तक आप रिया की सारी फाइल्स भी ले आइए।

चंद्रिका सारी फाइल्स लाकर देती है और सारे लोग अपने अपने कमरे में सोने चले जाते हैं।

चन्द्रिका अपनी बेटी दिव्या के पास बैठी उसके बालों को सहलाती देवी माँ से उसके स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना कर रही होती है।

क्रमशः.. 

सादर समीक्षार्थ 🙏 🙏 

आरती झा (स्वरचित व मौलिक) 

दिल्ली

सर्वाधिकार सुरक्षित © ® 

25 नवम्बर 2021

JP NARAYAN BHARTI

JP NARAYAN BHARTI

वाह लाजवाब आरती जी

10 अक्टूबर 2021

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