गाँव सूना, गालियां सूनी सड़क सूनी थी। ।
गाँव के पेड़ पौधे खेत तालाब तबेले सब छुपे थे।
दूर से आती कार ट्रकों की लाल पीली लाइटे थी।
धुंध में पानी की फुहार, पत्तों में टपक रही थी।
धुंध की चादर में लिपटे, कुत्तों की आवाजे थी।
नम्बर कमर्शियल, पर वह पुलिस की गाड़ी नहीं।
जवान उसमें बैठे, सुबह को वह रात कह रहे थे।
हमने कहां गाँव का सबेरा, कुत्ते भौंक रहे थे।
दूर लाइट की रोशनी में बैठा लरियाता सांड था।
हम भी उन्हें चोर उचक्कों की तरह लग रहे थे।
बात हुई वह समझ गये, डाला गेर निकल गये।
हवा ठंड थी, कोहरे की फुहार से पत्ते गीले थे।
दूर से घोड़े के टापूओं की आवाज आ रही थी।
सच में जमाना और मौसम बदल गया है।
रात को शाम और सुबह को रात कहने लगे।