लूटे तो बहुत,
जंगली जानवरों के भेष में, लूटे गये।
खूंखार आदिमानव के रूप में, लपेटे गये।
चोर, उचक्कों, डाकूओं से डराया गया हमे।
जेबकतरों, चाकूबाजी, गन से अछूते नहीं।
मिलकर अपने बहुरूपियों ने छोड़ा नहीं।
राजनीति के शिकार जब से हुए है,
निजी स्वार्थ के लिए खुद से लूटते रहे,
लूटकर, टूटकर सोचा था संभाल जाएंगे।
वक्त इतना बदला अब डिजिटल अरेस्ट हो जाएंगे।
कानून अभी तक इसका बना नहीं, सारी धाराएं,
कानूनी धरा में धरी की धरी रह गई।
अब डिजिटल अरेस्ट होकर लूटने लगे।
लूटे तो बहुत अब बचकर कहां जाएंगे?