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कृष्णमूर्ति को विश्व स्तर पर अब तक के सबसे महान विचारकों और धार्मिक शिक्षकों में से एक माना जाता है। जिद्दू कृष्णमूर्ति का जन्म 11 मई 1895 को दक्षिण भारत के एक छोटे से शहर मदनपल्ले में हुआ था। उन्हें और उनके भाई को थियोसोफिकल सोसाइटी के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ एनी बेसेंट ने अपनी युवावस्था में गोद लिया था। डॉ बेसेंट और अन्य ने घोषणा की कि कृष्णमूर्ति को एक विश्व शिक्षक बनना था, जिसके आने की भविष्यवाणी थियोसोफिस्टों ने की थी। इस आगमन के लिए दुनिया को तैयार करने के लिए, ऑर्डर ऑफ द स्टार इन द ईस्ट नामक एक विश्वव्यापी संगठन का गठन किया गया और युवा कृष्णमूर्ति को इसका प्रमुख बनाया गया। कृष्णमूर्ति ने एक गुरु के रूप में नहीं बल्कि एक मित्र के रूप में बात की, और उनकी बातचीत और चर्चा परंपरा-आधारित ज्ञान पर आधारित नहीं है, बल्कि मानव मन में उनकी अपनी अंतर्दृष्टि और पवित्र की उनकी दृष्टि पर आधारित है, इसलिए वे हमेशा ताजगी और प्रत्यक्षता की भावना का संचार करते हैं। हालांकि उनके संदेश का सार वर्षों से अपरिवर्तित रहा। जब उन्होंने बड़े दर्शकों को संबोधित किया, तो लोगों ने महसूस किया कि कृष्णमूर्ति उनमें से प्रत्येक से व्यक्तिगत रूप से बात कर रहे थे, उनकी विशेष समस्या को संबोधित कर रहे थे। अपने निजी साक्षात्कारों में, वह एक दयालु शिक्षक थे, जो दुख में उनके पास आए पुरुष या महिला को ध्यान से सुनते थे, और उन्हें अपनी समझ से खुद को ठीक करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। धार्मिक विद्वानों ने पाया कि उनके शब्दों ने पारंपरिक अवधारणाओं पर नया प्रकाश डाला। कृष्णमूर्ति ने आधुनिक वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों की चुनौती को स्वीकार किया और कदम दर कदम उनके साथ गए, उनके सिद्धांतों पर चर्चा की और कभी-कभी उन्हें उन सिद्धांतों की सीमाओं को समझने में सक्षम बनाया। कृष्णमूर्ति ने सार्वजनिक वार्ता, लेखन, शिक्षकों

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जीवन और मृत्यु

जीवन और मृत्यु

मृत्यु के बाद क्या होता है, इससे कहीं अधिक सार्थकता एवं प्रासंगिकता इस तथ्य की है कि मृत्यु से पहले के तमाम वर्ष हमने कैसे जिये हैं। मन-मस्तिष्क में समाये अतीत के समस्त संग्रहों, दुख-सुख के अनुभवों, छवियों, घावों, आशाओं-निराशाओं और कुंठाओं के प्रति प

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जीवन और मृत्यु

मृत्यु के बाद क्या होता है, इससे कहीं अधिक सार्थकता एवं प्रासंगिकता इस तथ्य की है कि मृत्यु से पहले के तमाम वर्ष हमने कैसे जिये हैं। मन-मस्तिष्क में समाये अतीत के समस्त संग्रहों, दुख-सुख के अनुभवों, छवियों, घावों, आशाओं-निराशाओं और कुंठाओं के प्रति प

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जीवन एक अन्वेषण

जीवन एक अन्वेषण

‘‘मैं आपको सबसे छोटी, सबसे सीधी राह बताऊँ; आप जानना चाहेंगे? ये है सिर्फ़ अवलोकन करना और फिर वहीं समाप्ति। मतलब कि अवलोकन करना, देखना, ताकि कोई अवलोकनकर्ता, देखने वाला न हो, बगैर उस अतीत के अवलोकन करना। केवल तभी आप भय की उस सकलता को, पूरेपन को देख पात

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‘‘मैं आपको सबसे छोटी, सबसे सीधी राह बताऊँ; आप जानना चाहेंगे? ये है सिर्फ़ अवलोकन करना और फिर वहीं समाप्ति। मतलब कि अवलोकन करना, देखना, ताकि कोई अवलोकनकर्ता, देखने वाला न हो, बगैर उस अतीत के अवलोकन करना। केवल तभी आप भय की उस सकलता को, पूरेपन को देख पात

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आमूल क्रांति की चुनौती

आमूल क्रांति की चुनौती

‘दि अर्जेन्सी ऑव चेन्ज’ कृष्णमूर्ति की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण पुस्तक है, जैसा कि 1971 में लंदन से प्रकाशित इसके मूल अंग्रेज़ी संस्करण के मुखपृष्ठ पर इंगित किया गया था। जीवन से जुड़े विविध विषयों पर इस पुस्तक में बेबाकी के साथ प्रश्न-दर-प्रश्न पूछे गये

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आमूल क्रांति की चुनौती

आमूल क्रांति की चुनौती

‘दि अर्जेन्सी ऑव चेन्ज’ कृष्णमूर्ति की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण पुस्तक है, जैसा कि 1971 में लंदन से प्रकाशित इसके मूल अंग्रेज़ी संस्करण के मुखपृष्ठ पर इंगित किया गया था। जीवन से जुड़े विविध विषयों पर इस पुस्तक में बेबाकी के साथ प्रश्न-दर-प्रश्न पूछे गये

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ईश्वर क्या है?

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ईश्वर क्या है?’ जे. कृष्णमूर्ति की चर्चित और लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है। यह पुस्तक उस पावन परमात्मा के लिए हमारी खोज को केंद्र में रखती है। ‘‘कभी आप सोचते हैं कि जीवन यांत्रिक है तथा कठिन अवसरों पर, जब दुख और असमंजस घेर लेते हैं तो आप आस्था की ओर

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ईश्वर क्या है?

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ईश्वर क्या है?’ जे. कृष्णमूर्ति की चर्चित और लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है। यह पुस्तक उस पावन परमात्मा के लिए हमारी खोज को केंद्र में रखती है। ‘‘कभी आप सोचते हैं कि जीवन यांत्रिक है तथा कठिन अवसरों पर, जब दुख और असमंजस घेर लेते हैं तो आप आस्था की ओर

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आपको अपने जीवन में क्या करना है?

आपको अपने जीवन में क्या करना है?

क्या आपकी दिलचस्पी महज किसी कैरियर की दौड़ में है, या आपकी मंशा यह जानने की है कि आप जीवन में वस्तुतः क्या करना पसंद करेंगे-ऐसा काम जिससे आपको सचमुच लगाव हो? क्या आज की दुनिया में जीने के लिए महत्त्वाकांक्षा और होड़ वाकई जरूरी है? व्यक्ति और समाज की

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आपको अपने जीवन में क्या करना है?

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क्या आपकी दिलचस्पी महज किसी कैरियर की दौड़ में है, या आपकी मंशा यह जानने की है कि आप जीवन में वस्तुतः क्या करना पसंद करेंगे-ऐसा काम जिससे आपको सचमुच लगाव हो? क्या आज की दुनिया में जीने के लिए महत्त्वाकांक्षा और होड़ वाकई जरूरी है? व्यक्ति और समाज की

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सोच क्या है?

सोच क्या है?

1981 में ज़ानेन, स्विट्ज़रलैंड तथा एम्स्टर्डम में आयोजित इन वार्ताओं में कृष्णमूर्ति मनुष्य मन की संस्कारबद्धता को कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग की मानिंद बताते हैं। परिवार, सामाजिक परिवेश तथा शिक्षा के परिणाम के तौर पर मस्तिष्क की यह प्रोग्रामिंग ही व्यक्

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सोच क्या है?

सोच क्या है?

1981 में ज़ानेन, स्विट्ज़रलैंड तथा एम्स्टर्डम में आयोजित इन वार्ताओं में कृष्णमूर्ति मनुष्य मन की संस्कारबद्धता को कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग की मानिंद बताते हैं। परिवार, सामाजिक परिवेश तथा शिक्षा के परिणाम के तौर पर मस्तिष्क की यह प्रोग्रामिंग ही व्यक्

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 मन क्या है ?

मन क्या है ?

”मन का मौन परिमेय नहीं है, उसे मापा नहीं जा सकता। मन को पूरी तरह से खामोश होना होता है, विचार की एक भी हलचल के बिना। और यह केवल तभी घटित हो सकता है, जब आपने अपनी चेतना की अंतर्वस्तु को, उसमें जो कुछ भी है उस सब को, समझ लिया हो। वह अंतर्वस्तु, जो कि आ

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”मन का मौन परिमेय नहीं है, उसे मापा नहीं जा सकता। मन को पूरी तरह से खामोश होना होता है, विचार की एक भी हलचल के बिना। और यह केवल तभी घटित हो सकता है, जब आपने अपनी चेतना की अंतर्वस्तु को, उसमें जो कुछ भी है उस सब को, समझ लिया हो। वह अंतर्वस्तु, जो कि आ

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ध्यान

ध्यान

महान शिक्षक जे. कृष्णमूर्ति की वार्ताओं तथा लेखन से संकलित संक्षिप्त उद्धरणों का यह क्लासिक संग्रह ध्यान के संदर्भ में उनकी शिक्षा को सार प्रस्तुत करता है-अवधान की, होश की वह अवस्था जो विचार से परे है, जो समस्त द्वंद्व, भय व दुख से पूर्णतः मुक्ति लात

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महान शिक्षक जे. कृष्णमूर्ति की वार्ताओं तथा लेखन से संकलित संक्षिप्त उद्धरणों का यह क्लासिक संग्रह ध्यान के संदर्भ में उनकी शिक्षा को सार प्रस्तुत करता है-अवधान की, होश की वह अवस्था जो विचार से परे है, जो समस्त द्वंद्व, भय व दुख से पूर्णतः मुक्ति लात

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आज़ादी की खोज

आज़ादी की खोज

आज़ादी इन्सान का सबसे बड़ा सपना रही है। लेकिन आज़ादी के मायने क्या हैं? आज़ादी और ज़िम्मेदारी का सह-संबंध क्या है? जो कुछ हमने जाना है, अनुभव किया है, जो धारणाएं हमने संजो रखी हैं, जो शास्त्र-प्रमाण हमने अपने भीतर गढ़ लिए हैं, क्या उस सबसे आज़ाद हुए

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आज़ादी इन्सान का सबसे बड़ा सपना रही है। लेकिन आज़ादी के मायने क्या हैं? आज़ादी और ज़िम्मेदारी का सह-संबंध क्या है? जो कुछ हमने जाना है, अनुभव किया है, जो धारणाएं हमने संजो रखी हैं, जो शास्त्र-प्रमाण हमने अपने भीतर गढ़ लिए हैं, क्या उस सबसे आज़ाद हुए

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