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झुमके का रहस्य

18 मार्च 2020

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बरेली ही क्या दुनिया भर के लोगों को यह सवाल परेशान करता रहा है कि आखिर, झुमका गिरा तो गिरा कहां? कई मौकों पर लोगों का बरेली आना-जाना लगा रहता है। ऐसे तमाम लोगों का यही सवाल रहता है कि झुमका गिरा कहां था? सवाल सुनकर बरेली वालों की जुबान पर खामोशी के अलावा कुछ नहीं होता है। सही बात तो यह है कि उनको ही नहीं मालूम कि झुमका कहां गिरा था?


इस गाने को राजा मेहंदी अली खां ने लिखा था। इसमें साठोत्तरी कविता के सभी तत्व मौजूद हैं। सन 1966 की फिल्म "मेरा साया" के इस गीत की धुन मदन मोहन ने तैयार की थी और आवाज आशा भोसले ने दी थी। यह गाना लोगों की जुबान पर इस कदर चढ़ा कि खुद बरेली वाले पूछते कि झुमका किस बाजार में गिरा?


सन 1966 में राजा मेहदी अली खां के उठाए गए सवाल का जवाब अब लगभग पांच दशक बाद मिल पाया है। लंबी खोजबीन के बाद मालूम हुआ, या यूं कहें कि तय किया गया है कि बरेली के डेलापीर तिराहे पर झुमका गिरा था। बरेली वालों ने तय किया है कि उसी डिजाइन के झुमके को डेलापीर तिराहे पर 14 मीटर के उसी दायरे में रखा जाए, जहां वह गिरा था। यह भी तय किया गया कि झुमके को बड़े साइज में लटकाया जाए, ताकि लोगों के पूछने पर बताया जा सके कि उसका स्मारक बना है, जाकर देख लो।


फिल्म मेरा साया में साधना के ऊपर यह गीत फिल्माया गया था। सवाल यह है कि इस गीत में बरेली के बाजार का जिक्र क्यों आया? जबकि फिल्म की कहानी का बरेली से दूर तक वास्ता नहीं है। खोजबीन पर यह बात सामने आई है दादा हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन के बीच नज़दीकियां बढ़ रही थीं। उन दिनों किसी कवि सम्मेलन में दोनों लोग बरेली आए थे। इस दौरान किसी ने उनसे पूछा कि यह सब कब तक चलेगा? अब तो अपना प्यार स्वीकार कर लीजिए। इस पर तेजी बच्चन ने कह दिया कि मेरा झुमका तो बरेली के बाजार में ही गिर गया। राजा मेहंदी अली खां को भी यह किस्सा मालूम था। मेहंदी. मंटो के भी दोस्त थे, मेरा साया के गीत लिखने की बारी आई तो उन्हें अचानक यह किस्सा याद आ गया। उन्होंने गीत में हीरोइन के झुमके को बरेली में ही गिरा दिया।


सुना यह भी जाता है झुमका नाम का एक सिपाही था। बरेली के बाजार में सिपाही झुमका का क़त्ल कर दिया गया था। बरेली को पांचाल नाम से भी जाना जाता है। बरेली के रामनगर का नाता पांचाली द्रौपदी से रहा है। चूंकि द्रौपदी भी झुमके की बहुत शौकीन रही थीं, इसलिए शायद वहां से प्रेरित होकर यह गाना तैयार किया गया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2014 में बरेली पहुंचे। उन्होंने इस गाने का जिक्र करते हुए कहा, लोग बरेली आते हैं तो झुमके के बारे में पूछते हैं, पर उन्हें मिलता कुछ नहीं।

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रचनाएँ
bulandbayan
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अज़्म हर बार चुटकुले निकले, ख़्वाब पानी के बुलबुले निकले।भले ही ख़्वाब पानी के बुलबुले निकले हों, पर ख़्वाब देखने का सिलसिला तो बंद नहीं किया जा सकता। यही तो जिंदगी और उसको जीने का फ़लसफ़ा है। यही सब सोचकर अपनी बात कहने के मक़सद से यह ब्लाॅग बनाया गया है। मैं अच्छी तरह जानता हूं और मानता भी हूं कि सामाजिक बुराइयों और अंधेरों के खि़लाफ़ मेरा यह अदबी (साहित्यिक) चराग़ एक अदना सी कोशिश है, लेकिन मैं हार नहीं मान सकता। हो सकता है कि साहित्यिक गाथाओं में बुराई रूपी अंधेरों से लड़ने वालों में मेरा नाम भी शामिल हो जाए। इसके उलट यह भी हो सकता है कि मेरी कोशिशों का कोई दस्तावेजी प्रमाण न रहे, फिर भी यह मेरे दिल को सुकून पहुंचाने के लिए काफ़ी है। आखि़र में वसीम बरेलवी साहब का शेर और बात ख़त्म... हादसों की जद पे हैं तो मुस्कुराना छोड़ दें जलजलों के खौफ से क्या घर बनाना छोड़ दें
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