ज़िन्दगी की कशमकस का ये हाल है फ़कीर ,
सोया कीए जागते हुये, ज़ागते हुये भी सोते रहे !
ईबादत की ऐसी फितरत हो गयी अब तो ,
पूज़ते रहे पत्थरों को, इंसानियत को खोते रहे !
मोहब्बत इस कदर हो गयी नफरत से हमें ,
मोहब्बत के छलावे मे बीज नफरत के बोते रहे!
ज़िन्दगी की चाहत लीए ताउम्र गुजार दी ,
नींद आई तो जाकर हम कब्र मे सोते रहे!