ना किसी से कोई शिकवा है, ना शेष कोई फरियादे है
कुछ धुधली धुधली चाहत है, कुछ भूली बिसरी यादे है|
इक झीनी झीनी चादर है, इक उलझा ताना बाना है,
इक कागज की कश्ती है, सागर पार तक जाना है.
20 अगस्त 2022
ना किसी से कोई शिकवा है, ना शेष कोई फरियादे है
कुछ धुधली धुधली चाहत है, कुछ भूली बिसरी यादे है|
इक झीनी झीनी चादर है, इक उलझा ताना बाना है,
इक कागज की कश्ती है, सागर पार तक जाना है.
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मैं अपने बारे में क्या बताऊ सिर्फ यही कह सकता हूँ कि कुछ जज्बातो को शब्दों में पिरोने की कोशिश है , उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगी D