जो सोचा....जीया...... चाहा......देखा यहां है वही लिखा ।
0.0(0)
6 फ़ॉलोअर्स
10 किताबें
हम सब जानते हैं कि इच्छाओं और सपनों में बहुत बारीकी का अंतर है, इच्छाएँ- जो हम जीवन में करना या पाना चाहते हैं ,सपनें- जो हम खुली या बंद आँखों से देखते हैं, जिनकी पहचान ही है अपूर्ण रहना। लोग अक्सर कह
कमरे में ऊपर छज्जे पर कुछ किताबें पड़ी है जो पिछले कई सालों की जमापूँजी हैं, जिसे मैंने लगभग 10 -12 साल से जमा कर रखा है, जो अब किसी काम की नहीं है क्योंकि previous course की किताबें थीं इसलिए अब out o
मैं जीवन में हमेशा एक ही बात से डरती रही हूँ कि मुझे कभी अपने किसी फैसेले पर या कहने-बोलने पर पछताना न पड़े, जीवन में किसी चीज का पछतावा न रहे और इसी डर से मैं कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुँचती, सबक
लिखना केवल मेरा शौक नहीं है,ये ज़रिया है खुद को जीने का और ये एहसास दिलाने का कि मुझमें कुछ तो बाकी है।मेरी कलम मुझे मुझसे ज्यादा समझने लगी है,ये उन लफ़्ज़ों पर आकर अपने आप रुक जाती है जिनके ज़िन्दगी में
रास्ते पर चलते हुए, सड़क पर मौजूद दूसरे लोगों पर ध्यान न देना मेरी शुरुआत से ही आदत रही है। इस कारण कई बार जो अच्छे जान-पहचान वाले लोग हैं वो भी भीड़ की तरह पास से गुज़र जाते हैं और बाद में कहीं मिलने पर