लिखना केवल मेरा शौक नहीं है,ये ज़रिया है खुद को जीने का और ये एहसास दिलाने का कि मुझमें कुछ तो बाकी है।मेरी कलम मुझे मुझसे ज्यादा समझने लगी है,ये उन लफ़्ज़ों पर आकर अपने आप रुक जाती है जिनके ज़िन्दगी में अब कोई मायने नहीं हैं।
जैसा कि मैंने हमेशा कहा है इस मतलब की दुनिया को मैंने कभी जीने का सहारा नहीं माना।मानती हूँ कि ऊपर वाले की बनाई इस बड़ी सी दुनिया में खूबसूरती बहुत है पर इसके हर कोने में एक सूनापन है जहाँ से हर कोई गुजरता है और टूट जाता है।
और इंसान सबसे ज्यादा टूटता है रिश्तों को संजोने में।
मेरी ज़िन्दगी में बहुत गिने-चुने रिश्ते हैं जो दिल के करीब हैं और जिन्हें जीवन के अंतिम पड़ाव तक मैं अपने साथ जोड़े रखना चाहती हूँ क्योंकि कुल मिलाकर हँसने या रोने की वज़ह यहीं से मिलती है।और अगर इस आधार पर अनुभव की बात कहूँ तो यही कि रिश्ते कभी शर्तों पर नहीं टिकते।हाँ, मानती हूँ कि पिछले कुछ दिनों से लगातार जिंदगी के लिए इच्छाएँ ख़त्म हो रही हैं पर दूसरी तरफ लड़ने के हौसलें भी बढ़ते जा रहे हैं।
अब तो लगता है या तो ये दुनिया मेरे लायक नहीं है या फ़िर मैं इस दुनिया के लायक नहीं हूँ।