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मेरी कलम

3 फरवरी 2024

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लिखना केवल मेरा शौक नहीं है,ये ज़रिया है खुद को जीने का और ये एहसास दिलाने का कि मुझमें कुछ तो बाकी है।मेरी कलम मुझे मुझसे ज्यादा समझने लगी है,ये उन लफ़्ज़ों पर आकर अपने आप रुक जाती है जिनके ज़िन्दगी में अब कोई मायने नहीं हैं।

जैसा कि मैंने हमेशा कहा है इस मतलब की दुनिया को मैंने कभी जीने का सहारा नहीं माना।मानती हूँ कि ऊपर वाले की बनाई इस बड़ी सी दुनिया में खूबसूरती बहुत है पर इसके हर कोने में एक सूनापन है जहाँ से हर कोई गुजरता है और टूट जाता है।

और इंसान सबसे ज्यादा टूटता है रिश्तों को संजोने में।
मेरी ज़िन्दगी में बहुत गिने-चुने रिश्ते हैं जो दिल के करीब हैं और जिन्हें जीवन के अंतिम पड़ाव तक मैं अपने साथ जोड़े रखना चाहती हूँ क्योंकि कुल मिलाकर हँसने या रोने की वज़ह यहीं से मिलती है।और अगर इस आधार पर अनुभव की बात कहूँ तो यही कि रिश्ते कभी शर्तों पर नहीं टिकते।हाँ, मानती हूँ कि पिछले कुछ दिनों से लगातार जिंदगी के लिए इच्छाएँ ख़त्म हो रही हैं पर दूसरी तरफ लड़ने के हौसलें भी बढ़ते जा रहे हैं।

अब तो लगता है या तो ये दुनिया मेरे लायक नहीं है या फ़िर मैं इस दुनिया के लायक नहीं हूँ। 


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रचनाएँ
मेरी बातें मुझ तक
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जो सोचा....जीया...... चाहा......देखा यहां है वही लिखा ।
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एक अलग दुनिया

3 फरवरी 2024
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हम सब जानते हैं कि इच्छाओं और सपनों में बहुत बारीकी का अंतर है, इच्छाएँ- जो हम जीवन में करना या पाना चाहते हैं ,सपनें- जो हम खुली या बंद आँखों से देखते हैं, जिनकी पहचान ही है अपूर्ण रहना। लोग अक्सर कह

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रद्दी

3 फरवरी 2024
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कमरे में ऊपर छज्जे पर कुछ किताबें पड़ी है जो पिछले कई सालों की जमापूँजी हैं, जिसे मैंने लगभग 10 -12 साल से जमा कर रखा है, जो अब किसी काम की नहीं है क्योंकि previous course की किताबें थीं इसलिए अब out o

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पछतावे से भरी जिंदगी

3 फरवरी 2024
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मैं जीवन में हमेशा एक ही बात से डरती रही हूँ कि मुझे कभी अपने किसी फैसेले पर या कहने-बोलने पर पछताना न पड़े, जीवन में किसी चीज का पछतावा न रहे और इसी डर से मैं कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुँचती, सबक

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मेरी कलम

3 फरवरी 2024
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लिखना केवल मेरा शौक नहीं है,ये ज़रिया है खुद को जीने का और ये एहसास दिलाने का कि मुझमें कुछ तो बाकी है।मेरी कलम मुझे मुझसे ज्यादा समझने लगी है,ये उन लफ़्ज़ों पर आकर अपने आप रुक जाती है जिनके ज़िन्दगी में

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अजीब-सी आदत

3 फरवरी 2024
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रास्ते पर चलते हुए, सड़क पर मौजूद दूसरे लोगों पर ध्यान न देना मेरी शुरुआत से ही आदत रही है। इस कारण कई बार जो अच्छे जान-पहचान वाले लोग हैं वो भी भीड़ की तरह पास से गुज़र जाते हैं और बाद में कहीं मिलने पर

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