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बातूनी कलम

बातूनी कलम

ये किताब समूह है ज़िंदगी के अलग-अलग भावों का या यों कहें कि अनुभवों की ऐसी दुनिया जहां हर शब्द जीया गया है,सहा गया है,निभाया गया है। ये हूबहू वैसा ही है जैसा घटा जिसमें कुछ जोड़ा नहीं गया और टूटी चीजों के टुकड़ों को संजोकर पिरोए गए एहसास हैं जो खुद

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बातूनी कलम

बातूनी कलम

ये किताब समूह है ज़िंदगी के अलग-अलग भावों का या यों कहें कि अनुभवों की ऐसी दुनिया जहां हर शब्द जीया गया है,सहा गया है,निभाया गया है। ये हूबहू वैसा ही है जैसा घटा जिसमें कुछ जोड़ा नहीं गया और टूटी चीजों के टुकड़ों को संजोकर पिरोए गए एहसास हैं जो खुद

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कोरी ज़िंदगी

कोरी ज़िंदगी

सामाजिक तथ्यों से जुड़े कुछ किस्से जो व्यक्तिगत जीवन पर हावी हैं और घुटन ,अवसाद, एकाकीपन आदि नकारात्मक भावों का सबसे बड़ा कारण भी । प्रस्तुत किताब में यही दर्शाने की कोशिश की गई है । पात्र और घटनाएं भले ही काल्पनिक हैं परंतु कथा-वस्तु और निष्कर्ष बिल

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कोरी ज़िंदगी

कोरी ज़िंदगी

सामाजिक तथ्यों से जुड़े कुछ किस्से जो व्यक्तिगत जीवन पर हावी हैं और घुटन ,अवसाद, एकाकीपन आदि नकारात्मक भावों का सबसे बड़ा कारण भी । प्रस्तुत किताब में यही दर्शाने की कोशिश की गई है । पात्र और घटनाएं भले ही काल्पनिक हैं परंतु कथा-वस्तु और निष्कर्ष बिल

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मेरी बातें मुझ तक

मेरी बातें मुझ तक

जो सोचा....जीया...... चाहा......देखा यहां है वही लिखा ।

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मेरी बातें मुझ तक

मेरी बातें मुझ तक

जो सोचा....जीया...... चाहा......देखा यहां है वही लिखा ।

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सवाल....

11 अप्रैल 2024
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चलो माना वो पहले वाली बात न रहीतुम्हें भी अब हमसे कोई आस न रहीपर मन के किसी कोने में दफ़्न मेरा नाम ही सहीकोई गिरी-पड़ी सी खंडहर दीवार ही सहीये ढेर पड़े मलबे सारेकभी तो पूछेंगे तुमसे कि मेरा ठिकाना कहाँ

अजीबो-गरीब हालात

11 अप्रैल 2024
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बड़ा अजीबो गरीब चल रहा है सब कुछकमनसीबी कुछ मिलने नहीं देती,बदनसीबी मिला हुआ भी छीन लेती है ।दिल का अपना ही रोना है,दिमाग दिल से परेशान है।आँखें बोलना चाहती हैं,ज़ुबान साथ नहीं देती।रातें बेनींद गुज़रती

ठहरा हुआ इश्क...

11 अप्रैल 2024
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मैं इनकार हूँ तुम्हारा यूँ बेकार न समझो,मुझे ढ़हती हुई-सी कोई कमज़ोर दीवार न समझो।तुम्हें पाने की कोशिश में कई बार हारती रही हूँ,मैं हर बार ज़िन्दगी से बढ़कर तुम्हें चाहती रही हूँ।ये बात और है कि साबित हा

बदलाव....

11 अप्रैल 2024
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तुम अगर मेरे बाद बदल से गये हो,तो हम भी पहले कहाँ ऐसे थे...रो बेशक दिया करते थे कुछ न मिलने पर,इतने आँसू तो आँखों में कभी न थे...मांग लिया करते थे बेहिचक जो पास न होता था,यूं घुटकर रह जानेवालों में से

माँ कहती है ....

11 अप्रैल 2024
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ये दुनिया आये दिन मेरे हौसले आज़माती है,मैं जितना चलना चाहूँ उतना गिराती है,ज़िन्दगी हर कदम पर संभलने का ही नाम है,माँ हर बार मुझे यही समझाती है।खुशियाँ कीमती होती है यूं ही नहीं मिलेंगी,परेशानियाँ कितन

नजदीकियां

11 अप्रैल 2024
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आज की सुबह कुछ अलग हैआँखें वही देख रही हैंजो देखना चाहती रही हैं वही महसूस कर रही हैं जैसा करीब से महसूस होता हैजो मीलों की दूरी में हमेशा उलझ साजाता रहा है आज बिल्कुल पास हैजिसे छुआ ज

फ़िक्र

11 अप्रैल 2024
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बात जब उसकी नसलामती की होती हैतब दूरियाँ सबसे ज़्यादा ज़हर लगती है...आये दिन नई उलझनों का सिलसिला कुछ नया तो नहीं है परतब हालातों की मनमानी हद से ज़्यादा लगती है ...मैंने कोशिश की है लिखकर कुछ मन ह

जीत तुम्हारी होगी....

11 अप्रैल 2024
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मैं हर रोज पन्ने पर एक ही गम लिख रही हूँ,रात की बेबसी और दिन का सितम लिख रही हूँ ...अब इससे ज्यादा क्या ही लिखूँ मैं हकीकत अपनी कि,अपने ज़िंदा होने को ही ज़िन्दगी लिख रही हूँ ...बूंदों से अंदाजा न लगाया

मेरा...तुम्हारा....

11 अप्रैल 2024
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कुछ मेरा है कुछ तुम्हारा है,अच्छा-बुरा हर लम्हा हमारा है ।हालातों की बेसुध-बेरंग लय पर,बनता-बिगड़ता हर साज़ हमारा है ।लकीरों की सोची-समझी साज़िशों में,डूबता-उबरता हर मंजर हमारा है ।दूर तलक फैले मशहूर-बदन

लिखेंगे....

11 अप्रैल 2024
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आगे सब ठीक रहा तो हर बात लिखेंगे,रातों में उगते सूरज का भी राज़ लिखेंगे...कितनी तोड़ी-मरोड़ी गयी है दुनिया अपनी,बीतते वक़्त की एक-एक करामात लिखेंगे...डूबती कस्ती में सामानों का बोझ रहा कितना,किनारे पर ग़र

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