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रद्दी

3 फरवरी 2024

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कमरे में ऊपर छज्जे पर कुछ किताबें पड़ी है जो पिछले कई सालों की जमापूँजी हैं, जिसे मैंने लगभग 10 -12 साल से जमा कर रखा है, जो अब किसी काम की नहीं है क्योंकि previous course की किताबें थीं इसलिए अब out of syllabus हैं ।माँ कई बार उन किताबो को लेकर बहुत कुछ सुना चुकी है कि इनको रखकर अब क्या करोगी? फिर पढ़ाई पीछे से शुरू करनी है ? वगैरह- वगैरह...पर मैं उन्हें हटाना नहीं चाहती न बेचकर न किसी को देकर। मन नहीं मानता इसलिये नहीं कि वो मेरे किसी काम के हैं या आगे मुझे उनकी जरूरत पड़ेगी पर शायद इसलिए कि उनकी अनुपस्थिति मन को बोझिल कर देगी  और जीवन के सैकड़ों अफ़सोसों में एक उन्हें दूर करने का अफसोस भी जुड़ जाएगा जो आमरण चलेगा और घूम-फिर कर बात फिर मेरे दिल और दिमाग की सहनशक्ति पर आएगी......और हो सकता है कि इसका कारण किताबों से मेरा लगाव भी हो जो कि शुरू से रहा है ।

अगर इसे life से relate करके देखूं और इसके context में समझने की कोशिश करूँ तो आजकल ऐसा ही कुछ चल रहा है। कुछ चीजें हैं जो पता है अब मेरे लिए नही हैं,जो अब किसी पड़ाव पर मेरा साथ नहीं देंगी, जिन्हें परिस्थितियों ने दूर कर दिया है या समय ने अपने दायरे में बांध लिया है फिर भी उसकी गठरी संभाले उन्हें साथ लिए रास्ते में चल रही हूँ।
और यही मानकर चल रही हूँ कि 'अतीत कभी बोझ नहीं हो सकता ।' मैं जानती हूँ इन्हें दूर करना जीवन मे कई और नकारात्मक पहलुओं को पास ले आएगा।

खैर, देखते हैं माँ कब तक मेरे साथ मेरी किताबों के दिन मुकर्रर करती हैं ।


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रचनाएँ
मेरी बातें मुझ तक
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जो सोचा....जीया...... चाहा......देखा यहां है वही लिखा ।
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एक अलग दुनिया

3 फरवरी 2024
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हम सब जानते हैं कि इच्छाओं और सपनों में बहुत बारीकी का अंतर है, इच्छाएँ- जो हम जीवन में करना या पाना चाहते हैं ,सपनें- जो हम खुली या बंद आँखों से देखते हैं, जिनकी पहचान ही है अपूर्ण रहना। लोग अक्सर कह

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रद्दी

3 फरवरी 2024
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कमरे में ऊपर छज्जे पर कुछ किताबें पड़ी है जो पिछले कई सालों की जमापूँजी हैं, जिसे मैंने लगभग 10 -12 साल से जमा कर रखा है, जो अब किसी काम की नहीं है क्योंकि previous course की किताबें थीं इसलिए अब out o

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पछतावे से भरी जिंदगी

3 फरवरी 2024
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मैं जीवन में हमेशा एक ही बात से डरती रही हूँ कि मुझे कभी अपने किसी फैसेले पर या कहने-बोलने पर पछताना न पड़े, जीवन में किसी चीज का पछतावा न रहे और इसी डर से मैं कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुँचती, सबक

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मेरी कलम

3 फरवरी 2024
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लिखना केवल मेरा शौक नहीं है,ये ज़रिया है खुद को जीने का और ये एहसास दिलाने का कि मुझमें कुछ तो बाकी है।मेरी कलम मुझे मुझसे ज्यादा समझने लगी है,ये उन लफ़्ज़ों पर आकर अपने आप रुक जाती है जिनके ज़िन्दगी में

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अजीब-सी आदत

3 फरवरी 2024
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रास्ते पर चलते हुए, सड़क पर मौजूद दूसरे लोगों पर ध्यान न देना मेरी शुरुआत से ही आदत रही है। इस कारण कई बार जो अच्छे जान-पहचान वाले लोग हैं वो भी भीड़ की तरह पास से गुज़र जाते हैं और बाद में कहीं मिलने पर

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