माँ के चरणों में तीरथ बसे हैं
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माँ के चरणों में तीरथ बसे हैं ,
मन को मंदिर बना कर देखो ।
काशी काबा ये मथुरा यही है ,
मन में माँ को बिठा कर देखो ।
दर भटकने से - कब क्या मिला है,
खोज थकता हिरन नाभि में है ।
कैसी बावलि है , ये सारी दुनियाँ,
दूर जाकर उसे खोजती है ।
माँ के चरणों में तीरथ बसे हैं ,
मन को मंदिर बना कर देखो ।
राम दिल में बसे , कृष्ण नैना ,
रोशनी में झलक देख लो तुम ।
गंगा जमुना सरस्वती माता ,
खुद में संगम झलकती माँ आँचल ।
पहले माँ को हिए बसा लो
सारे तीरथ खडें हैं यहीं पर ।
माँ के चरणों में तीरथ बसे हैं ,
मन को मंदिर बना कर देखो ।
राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढी