कभी हर शाम उसके मोहल्ले से ,
गुजरना होता था,
घर के पास उसके कुछ पल,
ठहरना होता था.
जब घड़ी सांझ को ,
छह बजाया करती थी,
धीरे से वो छिपते छिपाते,
छतपर आया करती थी.
बडे प्यार मुझको दिल का,
हाल पुछा करती थी,
"कैसे हो" हर बार यही,
सवाल पुछा करती थी,
"मैं बिल्कुल ठिक हूँ" ये जवाब मेरा होता था,
मैं भी उसको हाल उसके दिल का पुछा करता था.
प्यार भरी गपशप का फिर सिलसिला शुरू हो जाता था,
लेकिन उतने में ही अचानक ,
कोई बीच में आता था,
दो पल चुप हो जाता था मै,
और वो भी चुप हो जाती थी,
फिर आगे की बातें सारी,
इशारो में ही होती थी.
उसका आखों से बातें करना,
मुझको अच्छा लगता था,
दिन डुबता था अंधेरे में,
मैं उसकी आँखों में डुबता था,
तभी अचानक घरसे उसके,
आवाज उसको आतीं थी,
नाम लेकर उसका,
उसकि दीदी उसे बुलाती थी,
रह जाती थी बातें अधुरी,
वो मुझसे विदा ले लेती थी,
जाते जाते छत से नीचे,
एक उडन चुंबन दे जाती थी,
मै भी खुश हो जाता फिर,
अपने घर को निकलता था,
सोच सोच बारे में उसके,
अपने धुन मे चलता था,
अब काहे की भूख मुझे,
अब काहे की प्यास,
आजू बाजू होता रहता,
बस उसका आभास,
हो जाती रात फिर,
जग सारा सो जाता था,
लेटेे लेटेे बिस्तर पे,
उसकी यादों में खोता था,
कल फिर उससे मिलने की,
प्यास मन में जग जाती थी,
जगते जगते याद में उसके,
आंख मेरी लग जाती थी.