हंसो का जोड़ा डॉ शोभा भारद्वाज देखने वाले उन्हें हंसों का जोड़ा कहते थे .दोनों का एक ही गली में घर था आते जाते नजर टकरा जाती पता नहीं चला कब प्रेम हो गया दोनों छिप कर मिलने लगे लड़की का नाम मंजू था उसके पिता मन्दिर के पुजारी थे पंडिताई करते थे . घर का बड़ा बेटा विवाहित था उसकी अपनी चलती दुकान थी .
वह अपनाबस्ता लेकर उचक- उचक कर उन कच्चे रास्तों के आगे बनी अपनी पाठशाला के दरवाज़े पर टकटकीलगाए देख रही थी । वह मुस्कुराकरबुदबुदाई – कितना अच्छा लगता था ,स्कूल जाना ! पता नहीं कब खुलेगा .....?अरी बिटिया,कहाँ चली गई....? माँ की आवाज़ सेवह बस्ता एक तरफ़ रख कर ,रसोई में जाकर, बेमन से, माँ की मदद करने लगी ।