हंसो का जोड़ा डॉ शोभा भारद्वाज देखने वाले उन्हें हंसों का जोड़ा कहते थे .दोनों का एक ही गली में घर था आते जाते नजर टकरा जाती पता नहीं चला कब प्रेम हो गया दोनों छिप कर मिलने लगे लड़की का नाम मंजू था उसके पिता मन्दिर के पुजारी थे पंडिताई करते थे . घर का बड़ा बेटा विवाहित था उसकी अपनी चलती दुकान थी .
जुबा चुप क्यो?आपकी खामोश जुबा ने ,महफ़िल की नज़रों में चोर बना दिया|ताकते रहे आपकी नज़रों को, कभी तो इधर उठेगी, कुछ कहेंगी|ता उम्र साथ देने का वादा करती रही, खुशियों के फूल भरती रही|खुशियों के फूलो को संभाला बहुत, आपकी एक मुस्कान के लिए|साथ जीने मरने के वादे करते रहे तुमसे, रोज प्यार पाने के लिए |लड़ते
कुछ वक्त गये, दुपैसियल बाजार से फनां हो गये... फिर तीन, पांच, दस और बीसपैसियल भी साथ हो लिए,चवन्नी की बिसात क्या, अब अठन्नी भी पाकिट छोड़ गये, न जाने कितने, ताबो-बिसात वाले यूं ही बेखास हो गये।इसी दुपैसियल से तिलंगी, लेमचूस और खट्टा पाचक जुटाये थे... बामुश्किल जुगाड़े थे दसपैसियल तो भाई संग फुलप्लेट