shabd-logo

कहानी : होनहार बेटी

30 अक्टूबर 2022

103 बार देखा गया 103

-"हैलो पिताजी, कैसी चल रही है हमारी स्टेशनरी शॉप और मम्मीजी कहाँ हैं?" स्नेहा ने अपने पिताजी से उनके हालचाल जानने के बाद ये प्रश्न किया। -"तुम्हारी माताजी भी बेटा तुम्हारी ही तरह बिज़नेस-वुमन बनने की राह पर कदम रख रही हैं, रिसर्च कर रही हैं, और क्या-क्या नए फ्लेवर तैयार किये जाएँ जो मार्केट में उनकी पहचान बढ़ाएं।" हंसते हुए पिताजी बोले। स्नेहा भी मुस्कुरा दी और फिर मम्मीजी से  भी बात होने के बाद पिताजी ने फ़ोन रखा और याद करने लगे वे लम्हे, जब बेटे के अपने माता-पिता की तरफ से नकारा होने के बाद बेटी स्नेहा ने उनके आगे के जीवन के सपनों को पंख दिए। माता-पिता ने दोनों की समान रूप से परवरिश की और दोनों को उच्च शिक्षा दिलवाई और दोनों का विवाह भी धूमधाम से किया मगर बाद में उम्र के इस पड़ाव पर बेटा-बहू अपनी नौकरी के सिलसिले में विदेश चले गए और उसके बाद उन्होंने कभी भी माँ - पिताजी की सुध नहीं ली लेकिन इनके बेटी-दामाद ने इनकी हर तरह से देखभाल की और इन दोनों ने पिताजी की इच्छा के अनुसार उन्हें बुक स्टेशनरी खुलवा दी और स्नेहा ने मम्मीजी के हाथ के बने हुए अचार, जो मम्मीजी काफी टेस्टी बनातीं थीं, की हुनर को बाज़ार में उपलब्ध करवाया। बेटी स्नेहा ने टेक्सटाइल इंजीनियरिंग(कपड़ा उद्योग से संबंधित) फील्ड की पढ़ाई की और इससे संबंधित नौकरी करके आज खुद की इंडस्ट्री स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा रही थी। उनके दामाद , जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे, उन्होंने भी कंपनी से अनुभव लेने के बाद खुद का स्टार्टअप शुरू करने का प्लान बना लिया था। अभी वे सपरिवार उसी शहर में रह रहे थे जहां उनका ऑफिस था।

एक दिन स्नेहा ने अपने माँ - पिताजी को बताया कि वह अपनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री और दामादजी अपना स्टार्टअप शुरू करने के लिए सपरिवार रहने वहीं आ रहे हैं तो माँ-पिताजी की आँखों में खुशी के आँसू झलक आए और उन्हें ऐसा लगा जैसे बेटी-दामाद नहीं बल्कि बेटा-बहू घर वापस आ रहे हों।

माँ कहने लगीं-"बेटी और दामादजी कितना ध्यान रख रहे हैं  हमारा, काश बेटा भी ऐसा ही...", मगर पिताजी माँ की बात पूरी होने से पहले ही गंभीर होते माहौल को खुशनुमा बनाने की पहल करते हुए आमिर खान की स्टाइल में फ़िल्म दंगल की तर्ज पर यह प्रसिद्ध डायलॉग बोले - 'म्हारी छोरी छोरे से कम है के', पिताजी के हाव-भाव और उनके बोलने के लहज़े से माँ भी मुस्कुराये बिना न रह सकीं।

Ravindra Singh Thakur की अन्य किताबें

Aadrsh

Aadrsh

बहुत अच्छी लिखी है सर

21 अक्टूबर 2023

Ravindra Singh Thakur

Ravindra Singh Thakur

17 नवम्बर 2023

बहुत-बहुत धन्यवाद आदर्श आपको।

मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर लिखा है आपने 👌 आप मुझे फालो करके मेरी कहानी पर अपनी समीक्षा जरूर दें 🙏

4 सितम्बर 2023

Ravindra Singh Thakur

Ravindra Singh Thakur

21 अक्टूबर 2023

मीनू जी, बहुत-बहुत धन्यवाद आपका, जो आपने मेरी कहानी पर इतनी सुंदर प्रतिक्रिया व्यक्त की है, मैं आपकी कहानी को पढ़कर बहुत जल्द आपको प्रतिक्रिया भेजूँगा।

Kamal

Kamal

Bohot acchi hai

31 अक्टूबर 2022

Ravindra Singh Thakur

Ravindra Singh Thakur

2 नवम्बर 2022

thanks a lot.

Ekta Dangi

Ekta Dangi

Bhut achhi he

31 अक्टूबर 2022

Ravindra Singh Thakur

Ravindra Singh Thakur

2 नवम्बर 2022

thanks a lot.

1

कहानी : होनहार बेटी

30 अक्टूबर 2022
3
3
8

-"हैलो पिताजी, कैसी चल रही है हमारी स्टेशनरी शॉप और मम्मीजी कहाँ हैं?" स्नेहा ने अपने पिताजी से उनके हालचाल जानने के बाद ये प्रश्न किया। -"तुम्हारी माताजी भी बेटा तुम्हारी ही तरह बिज़नेस-वुमन बनने की र

2

कहानी : किताबों से दोस्ती

9 जुलाई 2023
0
0
0

सुनील और नरेश की वार्षिक परीक्षाएँ खत्म हो चुकीं थीं । दोनों के पेपर अच्छे हुए थे और दोनों अपने अच्छे परिणाम को लेकर आशास्वत थे। दोनों एक ही कालोनी में रहते थे और दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनों ही क

3

कहानी : मेहनत और ईर्ष्या

9 जुलाई 2023
0
0
0

सुनील और अजय दोनों एक ही स्कूल की एक ही कक्षा में थे। दोनों के घर पास-पास ही थे सो दोनों साथ ही स्कूल जाया करते थे । सुनील पढ़ने में और अजय क्रिकेट खेलने में काफी माहिर था | अजय पढ़ाई में सुनील की सहाय

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए