सुनील और अजय दोनों एक ही स्कूल की एक ही कक्षा में थे। दोनों के घर पास-पास ही थे सो दोनों साथ ही स्कूल जाया करते थे । सुनील पढ़ने में और अजय क्रिकेट खेलने में काफी माहिर था | अजय पढ़ाई में सुनील की सहायता लिया करता था तो वहीं सुनील भी एक अच्छा खिलाड़ी बनने के लिए अजय की सहायता लेता था ताकि उसका भी चयन आगे से स्कूल टीम में हो सके। दोनों एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए थे | अजय ने स्कूल टीम को अपने आलराउंडर खेल से काफी मैच जिताये थे इस कारण उसे अपने खेल पर काफी अभिमान हो गया था | वह स्वयं को एक चैंपियन खिलाड़ी और बाकि सब खिलाडियों को अपने से निम्न समझता था । दोनों की स्कूल की छुट्टियां चल रहीं थीं तो अजय ने सुनील को भी अकादमी ज्वाइन करवा दी और दोनों वहां प्रैक्टिस करते लेकिन एक बार अजय को लगने लगा कि सुनील की लगन अच्छी है वह पूरी मेहनत और लगन से जबअच्छा विद्यार्थी बन सकता है तो एक चैंपियन खिलाड़ी क्यों नहीं तो उसने उसकी लगन को तोड़ने के कई प्रयास किये। कभी वह बगैर पैड्स के कभी बगैर हेलमेट के सुनील को प्रैक्टिस के लिए भेजता इसके अलावा कभी पैड्स खुद इस तरह बांधता कि बीच पिच पर खुल जाएं और बैट्समैन गिर जाये, इन सबके पीछे अजय का विचार था कि कुछ दिन बाद सुनील इन परेशानियों के कारण परेशान होकर खेल बीच में ही छोड़ देगा मगर अजय का विचार इसके ठीक उल्टा पड़ा, सुनील ने परेशानियों को दिमाग पर हावी नहीं होने दिया और खुद इन सब परेशानियों का समाधान करके जमकर खेल की लगातार प्रैक्टिस करता गया शायद उसका दिमाग भी अर्जुन के केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने से मिली सफलता से प्रेरित हो गया था वहीं दूसरी और अजय का खेल की प्रैक्टिस से ध्यान हट गया इसका परिणाम यह हुआ कि अगले साल उसका स्कूल की टीम में सिलेक्शन हो गया और अजय का ख़राब खेल देखकर उसको टीम से बाहर कर दिया गया । यह देखकर अजय सुनील से और ईर्ष्या रखने लगा और इस साल की फाइनल ईयर की परीक्षा से ठीक पहले उसके परीक्षा परिणाम को बिगाड़ने के लिए उसने सुनील के उसके खुद के बनाये गए नोट्स उसके बैग से निकालकर अपने पास रख लिए। सुनील को इस बात से थोड़ी तकलीफ जरूर हुई लेकिन एग्जाम ख़राब देखकर उसने इन सब बातों से खुद को दूर रखा चूंकि उसने साल भर लगातार प्रैक्टिस की थी सो उसने प्री-एग्जाम की तरह तैयारी करते हुए तीन दिन में अपने नोट्स दोबारा तैयार कर लिए, इस डबल मेहनत से उसकी और अच्छी तैयारी हो गयी और एग्जाम में भी उसने टॉप किया जबकि साल भर पढ़ाई पर भी अच्छी तरह ध्यान न देने के कारण अजय फेल हो गया ।
सीख - मेहनत का कोई तोड़ नहीं और ईर्ष्या का कोई जोड़ नहीं । हमें किसी की सफलताओं से आहत ना होकर उस सफल इंसान से प्रेरणा लेकर और अपना लक्ष्य बनाकर केवल अपने लक्ष्य की सफलता की और ध्यान लगाना चाहिए और अपनी कमियों पर ध्यान देकर उन्हें दूर करने का निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए ।