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कलाकार

25 अगस्त 2016

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कभी हाथों से से मिट्टी को तरासते,

तो कभी पत्थरों को नए रूप में गढ़ते,

कभी रंगों से कागज पर नयी दुनिया बसाते,

या फिर मधुर संगीत की लहरी में हमें डुबाते,

हैं तो वो आम हम सब के जैसे,

पर लगें हम सबसेभिन्न हैं ,

करके भी करिश्मा हर बार अपने हाथों से

जिएं जीवन कितना सरल है,

धन का न लोभ है इन्हें ,न पुरस्कार का मोह है,

कला ही इनका सम्मान , कला ही इनकी पहचान है,

कला ही है धर्म इनकी , कहते सबइन्हें कलाकार हैं । ॥1॥


भले हो अभिनय किसी अभिनेता का ,

जो हर किरदार के साथ यहाँ बदल जाए ,

या लेख हो किसी लेखक का ,

जिसके शब्दों के जाल मे अच्छे भले यहाँ फँस जाएँ ,

करके प्रकाशित हर सत्य को,

लाता रोशनी में हर झूठ, अधर्म , अन्याय को,

कभी करे गुणगान अपनी संस्कृति का,

कभी पढ़ाए पाठ देशभक्ति का

करता रहता मार्गदर्शन कलाकार ये,

बन "मार्गदर्शक " ,

दिखाए सबको राह तरक्की और इंसाफ का । ।।2॥


पर ,

राहचले को जैसे छाँव देकर सेहनाधूप पेड़ की रीत है रे !,

वैसे रहकर खुद अँधेरे में ,

दिखाए दीपक वो पूरे जग काे रे ! ,

मिले गालियाँ या हो निंदा ,

हौंसले न होपस्त कभी रे !,

न मिले साबाशी या सही दाम मेहनत का,

पग उसके न डगमगाए रे !,

"खोजकर्ता" हे वो ,

बढ़ते रहना है उसे खोज में,

किसी नए प्रेरणा, किसी नए सोच के,

न चलता वो बने बनाए राह पे, बनाता अपनी राह खुद है ,

रुके जो जाकर उसके कब्र पे ,

जहाँ लेता वो अंतिम साँस है l ll3ll

- सौम्य स्वरुप नायक

सम्बलपुर ,ओडिशा

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रेणु

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सौम्य - आपका कलाकरो के प्रति इतना सुंदर रुझान पाकर मन खुश हुआ -- ऐसे ही कोशिश करते रहिये - बहुत शुभकामना

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कलाकार

25 अगस्त 2016
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कभी हाथों से से मिट्टी को तरासते,तो कभी पत्थरों को नए रूप में गढ़ते,कभी रंगों से कागज पर नयी दुनिया बसाते,या फिर मधुर संगीत की लहरी में हमें डुबाते,हैं तो वो आम हम सब के जैसे, पर लगें हम सबसेभिन्न हैं

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आज mercury फ़िर से हाई है ,लगता है गर्मी फ़िर से बढ़ी है ,रोज़ चाय से दिल लगाने बाले ,आज लस्सी को तलाश रहे हैं ,तो सर पर टोपी, आँखों पर चश्मा ,बना आज शहर का trend है,रोज़ आसमान को चीरते पंछियों की टोली ,फब्बारौन को  ढूंढ़ती जा पहुँची है ,तो जानवरों इंसानों में छाँव खोजने की ,लगी अजीब सी होड़ है.. ,अचान

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