पुराने जमाने में राजा राजवाडे किसी चित्रकार से अपनी तस्वीरें बनवाया करते थे l फिर कैमरे आए , तस्वीरें चित्रकार की जगह कैमरे बनाने लगी, तब भी कोई अगर आपकी फोटो खींचता था ,तब जाकर आपको आपकी तस्वीर मिल पाती थी । पर अब जमाना बदल चुका है । आज इस 21वी सदी में जहाँ इंसान को हर तरह की आज़ादी देने की बात हो रही है ,वहीं अपनी तस्वीर खुद खींचने की आजादी किस लिए न हो भला ?..शायद इसी लिए सेल्फी का आविष्कार हुआ होगा । कारण जो भी हो, पर आज सेल्फी खुद की तस्वीर खींचने की ,तस्वीर के माध्यम से अपने भाव ब्यक़्त करने का सबसे सरल उपाय है । आज आपको लोग आते जाते रास्ते में , पार्क में , रेस्तोरां में ,पर्यटन स्थल पर ,अलग अलग भँगियो में खड़े होकर अपने स्मार्टफोन से सेल्फी लेते दिख जाएंगे । आए दिन हमारे राजनेता, खिलाड़ी , फिल्मी सितारे अपने तरह तरह के सेल्फी के लिए चर्चे में रहेते ही हैं । दरअसल आज , सेल्फी खुद को देखने का नया तरीका बन चुका है । यह सेल्फी बिना कुछ कहे या लिखे ,आप कहाँ हैं, क्या कर रहे हैं ,तस्वीर के जरिए बताती तो है ,साथ ही साथ यह लोगों के फोटो के जरिए दिखावा करने की सदियों पुरानी आदत में भी नयी क्रांति ला चुकी है । और यकीन मानिए , सोशियल मीडिया ही इसका माध्यम बन रहा है । लोग कुछ अनोखा करने के चक्कर मेंं ,अपनी तस्वीर दूसरे व्यक्ति की तस्वीर से बेहतर दिखाने के चक्कर में कभी पहाड की चोटी पर चढके सेल्फी ले रहे हैं , कभी चलती ट्रेन के पास जाकर ,तो कभी समंदर की उफ़नती लहरों के बीच बिना संकट का अंदाजा किए सेल्फी ले रहे हैं । और परिणाम स्वरुप लोगों के इन जानलेवा हरकतों के लिए बार बार बड़े हादसे हो रहे है ,और कई बार तो लोगों के बहुमूल्य प्राण भी जा रहे है । हाल ही में ,भोपाल में एक राष्ट्रीय स्तरीय एथलीट एक बड़े तालाब के किनारे सेल्फी ले रही थी ,उसे तैरना नहीं आता था , तभी उसका पैर फिसला और तालाब में गिर कर उसकी मौत हो गयी। पिछले साल इसी तरह मुंबई के जूहू बिच पर सेल्फी लेते समय ,तीन बंधुओं की समंदर में गिरकर मौत हो गयी । इसी फरवरी में चलती ट्रेन के पास सेल्फी लेने की कोशिश में चेन्नई में एक सोलह साल के लड़के की ट्रेन से कटकर मौत हो गयी । हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार 2015 में सेल्फी लेते समय सबसे ज़्यादा मौतें भारत मैं ही हुई है l दुनिया में आज जहाँ रोजाना दस लाख से अधिक सेल्फी ली जाती हैं , उसमें से 30% सेल्फी तो संकटपूर्ण अवस्था में ली जाती है । जानकार कह रहे है की अबतक दुनिया में सेल्फी लेते समय जितनी भी मौतें हुई है ,उसमें से सबसे अधिक मौतें (एक तिहाई भाग ) ऊँचे जगहों जैसे ऊँचे इमारतों की छत या ऊँचे मीनारों से गिरकर हुई है । यह आंकड़े ही बता रहे हैं की हमे नशे की तरह सेल्फी की भी लद लग चुकी है और अब खुद को इससे निकालना जरूरी हो चुका है । वैसे भी आजकल मेडिकल साइंस यह कह रही है की लगातर दिन मैं कई बार सेल्फी लेने से आपको "सेल्फी एल्बो " नाम की एक बीमारी हो सकती है ,जिसमें हाथ के माँस खींच जाने के और कोहनी में असहनीय पीडा होने के लक्ष्यण होते हैं । साथ ही, लोगों के सेल्फी के कारण होने वाले दिखावे की आदत को, या कहें खुद को दूसरो से ज्यादा सुंदर ,ज्यादा आकर्षक दिखानेे की मानसिकता को मनोवै ज्ञान िक "नेसेसिस " नाम का मानसिक रोग भी कह रहे हैं । मित्रों , मैं यह नहीं कह रहा कि सेल्फी लेना खराब है , अपनी तस्वीर खींचना बिल्कुल भी खराब नहीं है । और सेल्फी तो विज्ञान की नवीनतम देन है और हमें उसका लाभ उठाना ही चहिए । पर महस समाज में दिखावा करने के लिए , दूसरों का ध्यान अपने की ओर आकर्षित करने के लिए , अपने कीमती जीवन को संकट मे डालना कहाँ तक तर्कसंगत है ? आप विचार कीजिए ।
-सौम्य स्वरूप नायक
सम्बलपुर , ओडिशा