तुम चांद और आफ़ताफ की
बातें करते हो,
धरती पर ख़ुद का घर है के नही,
युं तो तुमने कल्पनाओ में खुब
चावल के दानो से मृगनयनी
की मुरते बनाई होगी,
क्या तुम मृगनयनी की आँखो
मे कभी गुम हुए हो,
तुमने कभी परीयों को
आंगन लिपते लिखा है,
तुमने कभी कीसी लड़की को
दो के पहाड़े की तरह भोली-भाली
लिखा है, या एक से पांच तक की तरह
सरल लिख पाएं.......,
क्या चांद को कभी घर के अंदर
कीचन के कटोरे मे लिखा है,
क्या सिपीयों मे कभी महल को
लिखकर देखा है,
क्या सुरज से चुल्हा जलवाया है,
कल्पना से परे भी कल्पनाएं है
कविराज............,