सुगंध हो तुम लोकगीत की,
लोकगीत जिसमें पक्ष प्रेम का,
प्रेम में बसी हैं प्रीत जहां की
प्रीत में रुह-देह अर्पण करलो,
प्रेम रुप ईश्वर का दर्शन करलो!
मिल जाएगा विश्व सूंदरी सा तन,
महकने लगेगा फिर चंदन सा मन,
मन में बसा लो कोई योवन सुहाना,
रुप न चूरा ले कोई अल्हड़ तुम्हारा,
रुप-तन-मन को समर्पण करलो,
प्रेम रुप ईश्वर का दर्शन करलो!