मेरे शब्दों के आंचल में,
राधा भी है मीरा भी है!
मन भावन रुप रस
कान्हा के,
मेरे अधरों पर गाते है!
शिश प्राण अर्पण तुझको,
हो जगत जगती माँ!
मेरे कंठ काव्य अनुभव में,
एक बूंद सागर विराजे है!
3 जनवरी 2016
मेरे शब्दों के आंचल में,
राधा भी है मीरा भी है!
मन भावन रुप रस
कान्हा के,
मेरे अधरों पर गाते है!
शिश प्राण अर्पण तुझको,
हो जगत जगती माँ!
मेरे कंठ काव्य अनुभव में,
एक बूंद सागर विराजे है!
बहुत सुन्दर !
4 जनवरी 2016