Mai kavita likhti hoon
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वो दिन बीत गए जो बचपन के, उल्टी सीधी अठखेलियों और लड़कपन के, सूरज उतरता था जब तालाब के पानी में ,गुडियों का शुभ विवाह होता था अनजानी में, बीत गया गुल्ली डंडा बीत गया पेड़ों पर चढ़ना,&nb
तुम आज स्वयं को पहचानो, तुमने सारा संसार जना, तुम सारे जग की जननी हो, एक शांत नदी अग्नि ज्वाला,तुम सहनशीलता का सागर ,तूफान भरी इक आंधी हो, निज रक्षा की खातिर,औरों के मुह को मत देखे
मैं छोटी हूँ नादां हूँ भैया, हाँ थोड़ी शैतान हूँ भैया, तेरे आँखों की मैं पुतली, होठों की मुस्कान हूँ भैया,तेरे आँगन की मैं तितली, झिलमिलाता आसमान हूँ भैया,नहीं पराई करना मुझको, में भी तो हूँ तेरा