तुम आज स्वयं को पहचानो,
तुमने सारा संसार जना,
तुम सारे जग की जननी हो,
एक शांत नदी अग्नि ज्वाला,
तुम सहनशीलता का सागर ,
तूफान भरी इक आंधी हो,
निज रक्षा की खातिर,
औरों के मुह को मत देखे,
हम निज अग्नि की ज्वाला,
पापी को जलाकर राख करे,
जब बन जाए हम आंधी तो,
पाषाण शिखर से टूट पड़े,
हम प्रकृति का स्वयं एक अंश हैं,
हानि हो अगर हमारे मान की,
प्रलय से बड़ा विध्वंश हैं,
तुम स्वयं को अबला मत मानो,
तुम आज स्वयं को पहचानो।