ये मेरी कविताओं का संग्रह है जिसमें मैंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों को दर्शाया है।
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खुश रहकर जियो जिंदगी,आने वाले कल का आज हम।जियो हर पल जिंदगी ऐसी,अनमोल जिंदगी का पल हम।।रोज सूरज ही नहीं ढलता,आते हैं रात के पल भी।अनमोल जिंदगी भी ढलती है,मिलते हैं चांद सितारे भी।।ऐ अनमोल जिंदगी रोज ह
राष्ट्रीय एकता दिवस पर्व को,हम भारतवासी शान से मनाते हैं।अनेकता में एकता का प्रतीक,हम मिलकर ही सब सिखाते हैं।।राष्ट्रीय एकता दिवस पर्व को,हम आन और शान से मनाते हैं।भाषाएं हो भले अनेक हमारी,राष्ट्रगान
लोग कहते हैं कि खुश क्यों,हमें ईर्ष्या ही नहीं होती।दुख अपना किसी से हमें,बताने की जरूरत नहीं होती।।खुश रहना भी कला है,आदत में शुमार होती है।बात जुबां पे नहीं और,दिल में बसी रहती है।।खुश रहा करो कि ऐस
समुद्र की लहरें किनारे पे,ये आती जाती रहती हैं।ऊंचे वेग से उठती गिरती,उद्विग्नता मन में जगाती हैं।।समुद की लहरें उफनती है,संग समुद्री जीव आते हैं।किनारे पर ठहर कर कैसे,संसार की माया देखते हैं।।समुद्र
मौन जितना गहरा होगा,स्पष्टता परमात्मा की उतनी।सुनना अगर आवाज़ चाहते,सागर में मोती हो जितनी।।मौन रहो और ध्यान करो,परमात्मा की आवाज़ सुनो।ध्यान करो एकाग्र रहो,अंतरात्मा की आवाज सुनो।।मौन रहकर हृदय से जु
सतरंगी आसमान बिखर गया,अपने में समाहित सातों रंग।सतरंगी आसमान में उड़ने को,बेताब पंछी उन्मुक्त गगन को।।बिखरे रंग सतरंगी आसमान में,उड़ कर अपनी छटा बिखेरते।उड़ते बादल आह्लादित होते,पुलकित हो फिर मन मुस्क
मैं अपने देश का हमेशा,दिल से सम्मान करती हूं।छाया रहे आलोक हमेशा,दिल से अरमान रखती हूं।।शान हमारा है ये तिरंगा,तीन रंग है ये दर्शाता।किरणें बिखेरता केसरिया,सफेद रंग सादगी दर्शाता।।तिरंगे का अपना रंग ह
मुश्किलों के सदा हल हो ऐ जिंदगी।थके न फुर्सत के पल दे ऐ जिंदगी।।दुआ है कि सबका सुखद आज दे ऐ जिंदगी।आज सुखद है तो आने वाला कल भी दे ऐ जिंदगी।।इत्तेफाक से सबके रंग देखे हमने ऐ जिंदगी।चेहरे भी बदले हुए द
सांसे जब तक है,टकराव होते रहेंगे।रिश्ते जब तक है,टकराव होते रहेंगे।।बोलते रहते हैं पीठ पीछे,बोलते रहने दो।क्या फर्क पड़ता है,लगाव रहने दो।।दिल से दुआ करो,हर किसी की खैर रहे।खुदा हाथ थामे अपना,हर किसी
समझते हो गर कर्म को,जरूरत नहीं धर्म समझने की।पाप क्या और पुण्य क्या,कर्म ही करते रहने की।।कर्म तुम्हारे जुड़े पुण्य से,फल अच्छे तुम्हें मिलेंगे।बुरे कर्म तो जुड़ेंगे पाप से,फल उसके भी मिलेंगे।।कर्म हम
ओस की बूंदें धरा पर,ऐसे पल्लवित होती हैं।कदम धरा पर पड़ते ही,तन मन स्फूर्ति भरती हैं।।ओस की बूंदें पंखुड़ीयों पर,पुष्प भी खिल उठता है।कोमल कोमल सी कोपलें,खुशबू से मन खिल उठता है।।आसमान से गिरी धरा पर,
पूर्णिमा का चांद देखो,कैसे बिखेर रहा चांदनी।तारे भी जग मग करते,रौशन हो रहे संग चांदनी।।पूर्णिमा की रात हम तुम,कुछ बात संग चांदनी में।कैसे अपनी छटा बिखेरी,कुछ बात इस चांदनी में।।पूर्णिमा की इस रात में,
मनभावन श्रावण पावस मास,शिव शंकर भोले बाबा का।दर्शन को आतुर भीर लगी,पावस मास शिव शंभु का।।मनभावन श्रावण पावस मास,बाघम्बर धारी शिव शंभु का।हाथों में सोहे त्रिशूल डमरू,सिर गंगे चंद्र त्रिकालदर्शी का।।मनभ
हिन्द के हिंदुस्तानी हम, हिन्द की शान बढ़ाए।कर्मभूमि से जुड़े रहे हम, देश का मान बढ़ाए।। 1हिन्द हिन्दू सौराष्ट्र हम, मातृभाषा पे गर्व करे।गर्व अपनी संस्कृति पर, सरलता से व्यक्त करे।। 2ध्वजा हमारा है त
आया राखी का त्यौहार,चिंटू मिंटू सज धज आए।अम्मा ने थाली सजाई,लड्डू, पेड़ा, बर्फी लाई।।रोली अक्षत पुष्प सजाकर,बहना ने आवाज़ लगाई।आओ मेरे प्यारे भाई,आगे अपनी कलाई भाई।।रोली अक्षत टीका लगाकर,बांधी राखी कल
रक्षा बंधन त्यौहार आया।भाई बहन का प्यार आया।।खुशियां लेकर अपार लाया।हर पल साथ में प्यार लाया।।रोली चंदन राखी मिठाई।थाल सजाकर लाई भाई।।टीका लगाकर तुमको भाई।कलाई भी सजानी&n
दीप मेरे जल अकम्पित,घुल अचंचल!सिन्धु का उच्छवास घन है,तड़ित, तम का विकल मन है,भीति क्या नभ है व्यथा काआँसुओं से सिक्त अंचल!स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें,मीड़, सब भू की शिरायें,गा रहे आंधी-प्रलयतेरे लिये ह
रक्षा बंधन पर्व आया, लाए खुशियां हजार।भाई बहन पर्व लाया, नेह स्नेह दुलार।।नेह स्नेह दुलार, मेवा मिष्ठान भंडार।राखी रोली सजा, थाल सजाई अपार।।कर में राखी बंधा, रेशम का धागा प्यार।मां भी बलाए लेती, भाई ब