मुल्कपरस्ती या बुतपरस्ती से जिंदगी चलती नहीं,
ज़िंदगी को चलाने को ज़रूरी है ख़ुदपरस्ती.
मुल्कपरस्ती के नाम पर ज़ंग की मुहिम जो छेड़ते,
नाम ले मज़हब का जो आपस में है लड़ रहे,
ना तो वो वतनपरस्त है, ना ही है वो मज़हबी .
जो कुछ वो कर रहे वही तो होती है ख़ुदपरस्ती. (आलिम)