किताबघर प्रकाशन
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पारिजात’
साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत नासिरा शर्मा जी का पुरस्कृत उपन्यास "पारिजात" ‘पारिजात’ केवल एक वृक्ष, कथा और विश्वास मात्र नहीं है, बल्कि यथार्थ की धरती पर लिखी एक ऐसी तमन्ना है, जो रोहन के ख़ून में रेशा-रेशा बनकर उतरी है और रूही के श्वासों में ख़
पारिजात’
साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत नासिरा शर्मा जी का पुरस्कृत उपन्यास "पारिजात" ‘पारिजात’ केवल एक वृक्ष, कथा और विश्वास मात्र नहीं है, बल्कि यथार्थ की धरती पर लिखी एक ऐसी तमन्ना है, जो रोहन के ख़ून में रेशा-रेशा बनकर उतरी है और रूही के श्वासों में ख़
कागज़ की नाव
नासिरा शर्मा हिंदी कथा साहित्य में अपनी अनूठी रचनाओं के लिए सुप्रसिद्ध हैं। उनकी कथा रचनाएं समय और समाज की भीतरी तहों में छिपी सच्चाइयां प्रकट करने के लिए पढ़ी व सराही जाती हैं। ‘काग़ज़ की नाव’ नासिरा शर्मा का नया और विशिष्ट उपन्यास है। यह उपन्यास बिहार
कागज़ की नाव
नासिरा शर्मा हिंदी कथा साहित्य में अपनी अनूठी रचनाओं के लिए सुप्रसिद्ध हैं। उनकी कथा रचनाएं समय और समाज की भीतरी तहों में छिपी सच्चाइयां प्रकट करने के लिए पढ़ी व सराही जाती हैं। ‘काग़ज़ की नाव’ नासिरा शर्मा का नया और विशिष्ट उपन्यास है। यह उपन्यास बिहार
कवि ने कहा
अपनी कोमल भावनाओं तथा विवेकशीलता और संवेदनशीलता के कलात्मक संयोजन के कारण अनामिका की कविताएं अलग से पहचानी जाती हैं । स्त्री-विमर्श के इस दौर में स्त्रियों के संघर्ष और शक्ति का चित्रण तो अपनी-अपनी तरह से हो रहा है, लेकिन महादेवी वर्मा ने जिस वेदना औ
कवि ने कहा
अपनी कोमल भावनाओं तथा विवेकशीलता और संवेदनशीलता के कलात्मक संयोजन के कारण अनामिका की कविताएं अलग से पहचानी जाती हैं । स्त्री-विमर्श के इस दौर में स्त्रियों के संघर्ष और शक्ति का चित्रण तो अपनी-अपनी तरह से हो रहा है, लेकिन महादेवी वर्मा ने जिस वेदना औ
बेतवा बहती रही
एक बेतवा ! एक मीरा ! एक उर्वशी ! नही-नहीं, यह अनेक उर्वशियों, अनेक मीराओं, अनेक बेतवाओं की कहानी है। बेतवा के किनारे जंगल की तरह उगी मैली बस्तियों। भाग्य पर भरोसा रखने वाले दीन-हीन किसान। शोषण के सतत प्रवाह में डूबा समाज। एक अनोखा समाज, अनेक प्
बेतवा बहती रही
एक बेतवा ! एक मीरा ! एक उर्वशी ! नही-नहीं, यह अनेक उर्वशियों, अनेक मीराओं, अनेक बेतवाओं की कहानी है। बेतवा के किनारे जंगल की तरह उगी मैली बस्तियों। भाग्य पर भरोसा रखने वाले दीन-हीन किसान। शोषण के सतत प्रवाह में डूबा समाज। एक अनोखा समाज, अनेक प्
कश्मीर : रात के बाद
हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर का कश्मीर से पुराना और गहरा लगाव रहा है । ‘कश्मीर : रात के बाद’ में लेखक के इस पुराने और गहरे कश्मीरी लगाव को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है । एक गल्पकार की नक्काशी, एक पत्रकार की निर्भीकता, एक चेतस इतिहास-द्रष्टा
कश्मीर : रात के बाद
हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर का कश्मीर से पुराना और गहरा लगाव रहा है । ‘कश्मीर : रात के बाद’ में लेखक के इस पुराने और गहरे कश्मीरी लगाव को शिद्दत से महसूस किया जा सकता है । एक गल्पकार की नक्काशी, एक पत्रकार की निर्भीकता, एक चेतस इतिहास-द्रष्टा
आज़ादी मुबारक
मैंने देखा है कि कमलेश्वर ने कभी भी किसी ‘डॉग्मा’ से चालित होकर लिखना स्वीकार नहीं किया । कमलेश्वर की हर कहानी उसके जीवनानुभवों से निकली है । कमलेश्वर ने पढ़-पढ़कर संक्रांति के नहीं झेला है, बल्कि स्वय जिया है… उसकी शायद ही कोई ऐसी कहानी हो, जिसके सूत्
आज़ादी मुबारक
मैंने देखा है कि कमलेश्वर ने कभी भी किसी ‘डॉग्मा’ से चालित होकर लिखना स्वीकार नहीं किया । कमलेश्वर की हर कहानी उसके जीवनानुभवों से निकली है । कमलेश्वर ने पढ़-पढ़कर संक्रांति के नहीं झेला है, बल्कि स्वय जिया है… उसकी शायद ही कोई ऐसी कहानी हो, जिसके सूत्