एक बेतवा ! एक मीरा ! एक उर्वशी ! नही-नहीं, यह अनेक उर्वशियों, अनेक मीराओं, अनेक बेतवाओं की कहानी है। बेतवा के किनारे जंगल की तरह उगी मैली बस्तियों। भाग्य पर भरोसा रखने वाले दीन-हीन किसान। शोषण के सतत प्रवाह में डूबा समाज। एक अनोखा समाज, अनेक प्रश्नों, प्रश्नचिन्हों से घिरा। प्राचीन रूढियां है जहाँ सनातन। अंधविश्वास हैं अंतहीन। अशिक्षा का गहरा अंधियारा। शताब्दियों से चली आ रही अमानवीय यंत्रणाएँ। फिर जीने के लिए कोई किंचित ठौर खोजे भी तो कहाँ ! हाँ, इन अंधेरी खोहों और खाइयों में कभी-कभी मुट्ठी-भर किरणों के प्रतिबिंब का अहसास भी कितना कुछ नहीं दे जाता। उर्वशी का दु:ख है कि वह उर्वशी है। साधारण में भी असाधारण। इसीलिए सब तरह से अभिशप्त रही। तिल-तिल मिटती रही चुपचाप। प्रेम, वासना, हिंसा, घृणा से भरी एक हृदयद्रावक अछूती कहानी ! पूरे एक अंचल को व्यथा-कथा।
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