कितनी अद्भुत , कितनी प्यारी कितनी न्यारी है ये प्रकृति | ये झरने झर -झर कर बहते । देते सन्देश तू झुक कर चल ॥ बहती नदियाँ हैं कल - कल कर । देती सन्देश तू छल मत कर ॥ महा सागर बहते हैं हर - हर । कहते हैं चलते रहो मिलकर ॥ धरती कहती धीरज न छोड़ । चाहे जीवन में हों कितने मोड ॥ कहता अम्बर फैलो इतना । पूरी दुनियां को तुम ढकना ॥ पर्वत कहते इतना उठना । सबसे ऊँचा तुमको बनना ॥ कहते है वृक्ष सदा तुझसे । देना तू परिन्दो को आश्रय ॥ सूरज और चन्दा का कहना । तुम नियत समय पर ही चलना ॥ जिसकी लीला इतनी प्यारी । कितनी न्यारी है ये प्रकृति ॥