कोमल का पत्र
परमेश्वर ने सजीव व निर्जीव दोनो का निर्माण किया है।
सजीव बोलकर शिक्षा देते है और निर्जीव मैं रहकर।
मेरे मामा जी मौन हो गए, बोलते थे तो अंतर्मन को छू लेते थे। मौन होने पर आत्मा को छेद गए।
जब मौन हुए तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कह रहे हों – "अब मैं निश्चिंत हो गया हूं। मुझे अब डर नही सताता । जीवन की भागदौड़ अब मैं नहीं करूंगा। मेरी दौड़ पूरी हुई।।"
अपने जीवन के अंतिम दिन (17/08/2011) मैंने तुम सबको यही संदेश दिया है –" तुम भी संसार की ओर से मेरी तरह निश्चिंत हो जाओ। मौन को ग्रहण करना जीवन की महान उपलब्धि होती है। मौन में परम सुख, परम शांति है मैं अनुभव कर रहा हूं। पर तुम लोग समझते ही नही। "
मैं कहता हूं जब तुम मुझे याद करोगे तो मुझे खुशी होगी ।
मुझे पूरा विश्वास है कि " तुम लोग भी मौन को ग्रहण करोगे क्योंकि तुम सब ने परमेश्वर के वचन को ग्रहण किया है।।"
हर बात याद रखना।।
तुम्हारा कोमल
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