"मेरी रचना" कविता संग्रह है जो मेरी भावनाओं को दर्शाता है।
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थक गया हूं रोटी के पीछे भाग भाग करथक गया हूं दिन रात जाग जाग करकरूंगा अब अपने हाथों से मेहनतथक गया हूं अपने से भाग भाग कर।।१।।रुक जा अब तो अपने से मत भागहो गई सुबह अब नीद से जागकर कुछ काम इस दिन में&n
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आपके सामने मैं भरसक कोशिश करूंगा ईमानदार, होशियार, आपका तलबगार, वफादार आपका खैरख्वाह बना रहूं। पर शायद आप यह भूल जाते हैं कि मैं ऐसा हूं नही।। मैं तो मुंह में राम ब
बेस्वाद जिंदगी नमकीन करोगे कैसे? बिन ज्योति आगे बढ़ोगे कैसे? यीशु के बिन जग नीरस है बिन यीशु
जीवन में प
रेल की खटर–पटरमुझे कुछयाद दिलाती है,बहुत कुछ याद दिलाती है।याद दिलाती है अनवरत चलते रहने की,याद दिलाती है न रुकने की,याद दिलाती है मंजिल तकपहुंचने और पहुंचाने की।याद दिलाती है धूप–छांव में भीरंग न बदल
जिसका पेट भरा हो, उसको क्या फर्क पड़ता आम आदमी ही , गरीबी में &
हँसता देखकर किसी कोमुझे भी हँसना आ जाता है।रोता देखकर किसी कोमुझे भी रोना आता है।।लगता है मेरे अंदर भी एक भावनाओं भरा कोमल हृदय हैआज समझा मैं।। &nbs
हम थे, हम है, ये सब जानते हैं,हम होंगे, ये कोई नही जानता।न मैं, न तुम, कोई नही....बस एक बात जानता हूंवो था, वो है, वो रहेगा।। महेन्द्र "अटकलपच्चू" ल
रात का अंधेराजिसने मुझे घेरामैं चिल्लायान तेरा न मेरा।रात का अंधेराबीत गया सबेराअब छोड़ोअपना डेरा।।रात का अंधेराचारों ओर घेराचुप हो जान कर तेरा,न कर मेरा।।चांद का डेराछाया घेराचला गया सारा अंधेरा
जन्मा हमारा यीशु ( कोरस)प्यारा हमारा यीशुहम झूमें सभी, हम गाएं सभी -2यीशु है हमारा आया -2जन्मा_____________ईश्वर ने हमें चाह
रात में जब सोता हूंतबअजीब से ख्याल आते हैं।कभी डर सा लगता हैतो कभी घुटन सी महसूस होती हैनींद भी उचट जाती हैकभी रोने को मन करता हैकभी हंसने का।बिस्तर से उठकर इधर-उधरटहल भी लेता हूं।दो एक घूंट पानी भी प
संसार में दो ही जात हैएक औरतदूसरा आदमी।संसार में दो ही जात हैएक मानवएक दानव।संसार में दो ही जात हैएक गरीबदूसरा अमीर।संसार में दो ही जात हैएक पशुएक पक्षी।संसार में दो ही जात हैएक बुरादूसरा भला।संसार मे
चलना होगा तब तकचलती है सांस जब तक।।दिवस, पाख,मास चलते सूरज, चांद, सितारेऋतुएं चलती, मौसम चलताचलते ग्रह–नक्षत्र सारे।।अचला चलती, नदियां चलतींचलतीं सागर की लहरें,नदियों के संग धारा चली,नदी, नाले और
सात रंग की अजब कहानी बरसों पहले कहती नानी ।। बैगनी रंग बैर मिटाता सबको &nbs
देता मुझको तंगी में आशिषें घटी के समय देता बरकतेंखाली जीवन को देता भरपूरीक्रूस इसलिए घमंड का कारण है।जो समाज संगति से दूर करतावो
रोजी की तलाश कर रहे हमयतीम की जिंदगी जी रहे हमभूख की मार सहन नही होतीधूप की गर्मी से सूख रहे हम।।भटक भटक कर थक गए है हमकिस मुसीबत में फंस गए है हमभूखे पेट अब रहा नहीं जातापेट की अगन से सूख गए है हम।।द
जब भी अकेला होता हूंअजीब सा ख्याल आता है मन मेंन जाने क्योंऐसा लगता है किसच बोलने का डरसब में समाया है।क्षमा मांगने पर भीलोग बुरा मान जाते हैंस्वीकार लो अपनी गलती तो भी रूठ जाते हैं।गलत
क्यों करते हैं अधिकारी,दोगुला व्यवहारसमान सहकर्मियों के साथ।एक को सर पर बिठाते हैदूसरे से मार मार मरीचि कहलवाते है।कुछ कहो तो धमकी देते हैनियम बनाने की।धमकी देते है वेतन काटने की।धमकी देते ह
आवश्यकता है कर्म की, साहस और परिश्रम कीभाग्य भरोसे मत रहनाचलो राह अब श्रम की ।बढ़ना जो चाहे आगेशुरुआत आज ही कर,जो पाना है लक्ष्य अपनापा अपने बलबूते पर।चढ़ती चींटी गिर गिर करमेहनत कर तू मर मर करभा
रात दिन मेहनत करता, जी भर पीता पानी ।तंगी में भी खुश रहतामजदूर तेरी यही कहानी।औरों की सेवा करतासर्दी गर्मी या बरसे प
मैं जानता हूं किमेरे अपने ने गलती की हैकिसी के साथ बुरा बर्ताव किया हैजान बूझ करधोखा दिया हैकिसी का बनता काम बिगाड़ा हैनीचे गिराने का भरसक प्रयास किया हैफिर भीमैंउसकी प्रशंसा करता हूंउसकी ता
नजर उठा कर देखा तोचारों ओर सन्नाटा है,कोई नजर नहीं आता मुझकोक्योंकि मैं अकेला हूं।।रात की खामोशी मेंझींगुर झें झें करते है,कोई नही कुछ कहता मुझसेक्योंकि मैं अकेला हूं।।चारों ओर काला घेरामेरा साथ निभात
कोई कील बन सताए, हथौड़ा ठोक दोबन कटार दुश्मन के सीने में भोंक दो।ये देश है वीर जवानों का मस्तानों काहै आग सीने में, दुश्मन को झोंक दो।।न देख सकें दुश्मन की आंखे इस ओरऐसा मचा दो दुश्मन के दिलों में शोर
शजिन्दगी कट रही हैटुकड़ों में बंट रही हैदेखता हूं रोज उसको दर दर भटक रही है।।रिश्तों में अब रस नहींकिसी में अब तरस नहींसोचता हूं रोज क्यों,
शीर्षक- विशेषता कई बच्चे एक बच्चे की हँसी उड़ा रहे थे। और वहीं गाँव के सरपंच आ रहे थे।। बच्चों को इस कारण हँसी आ रही थी। उस बच्चे के पैरों में छह-छह उंगलियाँ थी।। बेचारा वह बच्चा शर्म के मारे रो रहा थ
एक पर्यटक एक होटल मे आया।उसे एक कमरा बहुत मन भाया।।उसने वह कमरा किराये पर लिया।महीने भर का पूर्व भुगतान किया।।होटल वाले ने कहा आनन्दपूर्वक रहिए।पर श्रीमान क्या आपको पावती चाहिए।।पर्यटक बोला इसकी जरूरत
क्यों लगता है कोई मदद नहीं करता मेरीशायद मैं अकेला हो गया हूॅन कोई वाट जोहता मेरी।।मन बेबस बेचैन डर डर जाती रूह तक मेरीमगर मै अकेला नहीं हूॅप्रभु! बस मुझे आस है तेरी।।राह अंधेरी है