स्मृतियां
किसी के द्वारा कहे हुए कुछ शब्द, कुछ बातें, कोई विशेष अवसर या कोई घटना को भूल पाना बड़ा मुश्किल होता है। जीवन में ऐसे कई अवसर आते है जो हमें हमेशा याद रहते हैं। ये स्मृतियां हमें पुराने दिनों की याद दिलाती है और उन्हे याद करके बड़ा संतोष मिलता है। और कुछ हमे रूला जाती है।
एक शाम मैं यूं ही हास्टल से घूमने के उद्देश्य से निकला। और टहलते टहलते जिला अस्पताल के पास आकर रुक गया। अस्पताल के मुख्य द्वार के पास एक बूढ़ा आदमी बैठा रो रहा था। और पास में ही एक कपड़े में लिपटा हुआ कुछ रखा था। उसे रोते हुए देखा तो मैं उसके पास चला गया और उससे पूंछा– दादा क्या हुआ? क्यों रो रहे हो? उसने जो बताया सुनकर मैं तो स्तब्ध रह गया।
वह रोते हुए बोला– बेटा, ये मेरी बेटी है जो अब मर गई है। इसे सांप ने काटा था और मैं इसे अस्पताल लेकर आया था। अभी डाक्टर ने कह दिया कि ये मर गयी है इसे ले जाओ। मैने पूंछा– दादा, ये कैसे हुआ? वह बोला– मैं और इसकी मां गांव में मजदूरी करने गए थे। ये घर में खाना बना रही थी। मंदुलिया (मिट्टी का बर्तन) में दाल रखी थी उसी को निकालने गयी थी। पता नहीं कहां से उसमे सांप आ गया। जैसे ही इसने दाल निकलने को हाथ डाला सांप ने काट लिया। बेटा, एक महीना हुआ है इसके विवाह को। अभी इसके ससुराल वालों को भी पता नहीं कि इसे सांप ने काट लिया है और मर गयी है।
रोते रोते उसका बुरा हाल था। मेरे भी आंखों में आंसू आ गए। बड़ा दुख हुआ। एक अकेला बूढ़ा आदमी और उसकी जवान बेटी जिसकी अभी मेंहदी भी नही छूटी थी और .....।
मैने कहा– दादा, घर कैसे जाओगे? बोला– बेटा, मेरे पास तो पैसे भी नहीं हैं और कोई टेक्सी वाला ले जाने को तैयार भी नही है। मैने कहा– दादा, आप धीरज रखो मैं कुछ इंतजाम करता हूं।
और पास में खड़ी एक एंबुलेंस में बैठे एक आदमी से बात की। सारा हाल बताया तो वो कहने लगा भाई ये सरकारी एंबुलेंस है। मैं चला तो जाऊंगा पर कुछ खर्चा लगेगा। मैने पूछा कितना खर्चा देना होगा? वो बोला– 100 या 200 रूपये में काम हो जायेगा।
मैने तुरंत अपने जेब में से 100 रूपये निकाल कर दिए और उन दादा को और उनकी मृत बेटी को एंबुलेंस में बिठाकर उनके गांव भेज दिया।
आज जब भी इस घटना को याद करता हूं आंखो मे आंसू आ जाते हैं।।
महेन्द्र "अटकलपच्चू"
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