अच्छी जिन्दगी के लिए घर को छोडा
जिने के लिए फिर घर की ओर दौड़ा
बात आसमान छूने की करता था
अब अपने दरवाजे भी नी खोल सकता
ना जाने कितनों को गिराया था
फरेबी का जाल बुन के आगे आया था
फिर पड़ी गले मे कुकर्मो की लगाम
आखिर कार घर मे गिर आया धड़ाम
कितना हनन किया धरती का
सार सार सब ले लिया मही का
आधार हुआ खोखला लालच से
तो क्रुद्ध क्यू ना हो पृथ्वी मानव से
अब पछताना बिल्कुल व्यर्थ
अब सोचने का क्या अर्थ
चाहिए अगर अब भी प्रकृति की छांव
तो बनना होगा हर शहर को गांव
••••••••पिनाकी