सभी को जीवन में निर्णय लेना पड़ता है । हमारे सामने हालत यह हो कि या तो कोई विकल्प ही न हो या फिर कोई विकल्प उपलब्ध हो।
विकल्प नहीं हो तब तो कोई बात ही नहीं है लेकिन विकल्प के होने का अर्थ केवल इतना ही है कि कम से कम दो विकल्प तो होंगे ही ...
अब ये दो विकल्प तीन प्रकार के होते हैं
अच्छा –अच्छा
अच्छा – बुरा
बुरा – बुरा
सबसे आसान है दूसरा वाला हम आराम से चुन लेते हैं , कठिनाई का स्तर पहले और तीसरे मे बढ़ता है यहीं द्वंद्व है ।
दो अच्छे में से किसे चुनें ? ...चलिये यह भी हो ही जाता है ...हम चुन ही लेते हैं ....
सबसे कठिन है दो बुरे मे से एक को चुनना.... आप साँप के काटने से मरना पसंद करेंगे या या पहाड़ से फेंक दिया जाए...?
रोबर्ट फ़्रौस्ट ने “The Road Not Taken” में इसी बात को कही है ..
Two roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
एक ही विकल्प पर टिके रहने की बाध्यता है ... कोई भी एक रास्ता तय करना है और जब एक बार चुन लिया गया तो उसमें परिवर्तन भी नहीं कर सकते ... साथ ही दो रास्तों पर एक साथ चल नहीं सकते और आगे जा कर रास्ता बदल भी नहीं सकते ...
जो हम आज चुन लेंगे वही हमारी नियति हो जाएगी ....यहाँ रोबर्ट फ़्रौस्ट उन दो रास्तों मे से उस रास्ते को चुनते हैं जिस पर कम चला गया है ।
यह एक पहलू है दूसरा पहलू है .....धर्म – अधर्म का ... सत्य – असत्य का ...
एक धर्म तो यह है - जिसे गुण-धर्म भी कहा जाता है अर्थात अपनी प्रकृति ...हम अपनी प्रकृति या दूसरे शब्दों मे परमात्मा द्वारा दिया गया रोल /पात्रता बदल नहीं सकते ...हम जब कुछ दूसरा होने का प्रयास करते है उसी समय हमारी नैसर्गिकता हम से दूरस्थ होती जाती है फलतः हम विद्रुप - विकृत होने लगते हैं / दिखने लगते है ।
जानामि धर्मं न च मे प्रवृत्ति: जानाम्यधर्मं न च मे निवृत्तिः |
केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्मि तथा करोमि ||
दुर्योधन कह रहा है ....ऐसा नही है कि मैं धर्म नहीं जानता - इस बात से यह स्पष्ट था कि धर्मराज युधिष्ठिर का हस्तीनपुर पर स्वयंसिद्ध अधिकार की बात भी वह भली भांति जानता था ।
वे सभी एक ही गुरु के शिष्य हैं। शिक्षा –दीक्षा दोनों की एक समान ही हैं।
कुल –परंपरा भी एक ही है।
अब दो ही बात आती है पहली यह कि जो हम चुनते हैं उसी से हमारा भविष्य तय होता है .....या जो भविष्य मे होना है उसी प्रकार का हमारा चुनाव होता है साथ ही हमारे चयन मे हमारी प्रकृति की भूमिका भी अहम होती है ।
I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I—
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.