एक मेरे मित्र हैं उनकी पत्नी ही उनकी प्रेरणा रहीं हैं। उन्होंने जीवन में कई उपलब्धियाँ पायी हैं । कैसे वे आगे बढ़े , किस तरह से जीवन की लड़ाई लड़ी। कुछ हास्य व्यंग्य से भरी इनकी कथा इसी में आगे जा कर बड़ी रुचिकर होती जाती है।
उनकी शादी को 3 वर्ष हो चुके थे । कितने ही इम्तिहान देते देते उनका मन थकने लगा था लेकिन पत्नी का श्रीमुख देख कर वे फिर से ऊर्जावान हो उठते।
सपना तो खैर आईएएस बनने का था लेकिन परीक्षा वे रेलवे के समूह घ तक का नही छोड़ते थे।
आखिरकार इस रात की भी सुबह हुई और वे रेलवे में लाइन मैन की नौकरी पा गए।
लाइनमैन लगभग एक सरकारी मजदूर ही तो होता है। उन्होंने अपने आसन्न अधिकारी से कहा मुझे कार्यालय में ही कोई काम दे दीजिए..मैं एक पढा लिखा इंसान हूँ साथ में इंग्लिश से एम ए किया हूँ भोजपुरी मीडियम से।
अधिकारी इतने पर प्रसन्न नही हुआ तो बोले हम 4 बार UPSC का पी टी फेल किये हैं सर और इस बार फिर दे कर आये हैं। UPSC में बैठने केलिए भी करेजा चाहिए...फिर भी अफसर न माना!!
धूप में जब वे अन्य कुशल मज़दूरों के साथ अकुशल से काम करते तो उनके स्वाभिमान की अधो जटाएं लहर जातीं।
शाम को पत्नी से बतियाते तो पत्नी कहती " थक कर बैठ गए क्या भाई मंजिल दूर नहीं है" और इधर उधर मत जाना साजन क्या घर में नूर नहीं है??
इन्हीं प्रेरणादायी आशीर्वाद से उन्होंने मित्र को जिंदा रखा...एक दिन अफसर गहमा गहमी के बाद वे लम्बी छुट्टी ले कर पत्नी को बिना बताए शहर के उसी कमरे पर आ गए जहाँ वे UPSC नाम के लक्ष्य पर निशाना लगाया करते थे।
स्नातक स्तर का एसएससी का एग्जाम सर पर था...साहब तो पूरी जान लगा कर भीड़ गए...
मन में प्रण किया कि इस बार कबाड़ देंगे....
और ऐसा कबाड़ेंगे कि फिर यहां कुछ जमेगा नही और जो जमेगा नही तो भविष्य में जलेगा भी नहीं..
पता नहीं कितनी रात वे दो कौर खिचड़ी खा कर जगे...कितनी रात दाल पी कर तो कितनी रात दस्तकारी और हस्तकला में बिता दिए लेकिन परिश्रम का परित्याग नही किया...रात को 2 बजे दौड़ने भी लगते ...उन्हें लगता कि कहीं बिहार में दरोगा की बहाली न निकल जाए...।
इन्ही जी तोड़ मेहनत और परीक्षा के बाद एक दिन उन्होंने परिणाम देखा और खुद को चयनित पाया...वे लेखापरीक्षक के पद पर चयनित हुए थे...अपने परिणाम को देख कर उनका हृदय असीम सम्वेदनाओं से भर गया...जीवन के इस पड़ाव पर नौकरी...उसमें भी विवाहित... लगे भरभरा कर रोने...बोले अब मेरे जीवन में कोई इच्छा नही बची रिजल्ट देख लिया अब मैं मरने जा रहा हूँ....और लगे बीच सड़क पर बुक्का फाड़ कर रोने...मइया गे मइया... हम न बचबाउ गे मइया...
पूरा वातावरण सन्न....लोग समझ नही पा रहे थे किया क्या जाए... धड़ाम से गिरने के कारण माथे से खून...आनंद के अतिरेक से लघुशंका भी निःसृत हो रही थी...कहाँ माहौल वीर रस का था वीभत्स में परिणत हो रहा था...मेरे एक मित्र पिंटू ने उनके कान में कहा श्रीवाले उठ जाओ कहीं अंगभंग हो गया तो बिना मेडिकल कराए नौकरी जॉइन नही कर पाओगे बेटा... उठो बहुत नौटंकी हुई...
उसी हालत उन्होंने जवाब दिया बउच्चट हो क्या बे! सरकारी सेवा में केवल एक बार मेडिकल होता है। और ये हमारी दूसरा नौकरी है... तुम अपना देखो...मैं तो मीडिया का वेट कर रहा हूँ...
आगे मैं कहानी में बताऊंगा कि कैसे उनकी पत्नी को एक एस पी की पत्नी से जलन हुई और कितने बखेड़े खड़े हुए....
क्रमशः....