कहानी गतांक से आगे...
मैं और मेरे मित्र दोनों अपनी-अपनी राम कहानी अक्सर सुनाया करते थे । एक बार मित्र ने कहा कि मैं तो भोलेबाबा का भक्त हूँ भाई। हमने कहा तुम इतने कुटिल हो और भजते हो -भोले बाबा को ?
तो उसने तपाक से उत्तर दिया तुम भी तो राम जी को भजते हो...
कह - कही लगी और हम दोनों शिलांग पिक की ओर धीरे धीरे बढ़ने लगे।
उन्होंने कहा तुम जैसे भी हो एक बात तुम्हारी बड़ी प्रभावित करती है ..रामचरितमानस बड़े मन से गाते हो...सबसे उतंग चोटी पर पहुंच कर जन दोनो मित्र हांफते हुए पहुँचे तो वे कहने लगे...जानते हो मैं पहले भगवान को नहीं मानता था...अब मानने लगा हूँ...मैंने कहा क्यों...उन्होंने कहा वह इस वजह से कि- मैंने भगवान से प्रार्थना की कि मुझे लाइन मैन की नौकरी से निकालो प्रभु अगर तुम सच में हो तो मेरी विनती सुनो...
समझ रहे हो न! साला कहाँ आई ए एस बनने का सपना और कहाँ यह मेहनत मजदूरी...बहुत अपमानित हुआ भाई....लेकिन यह तय बात है कि ईश्वर कहीं न कहीं तो अवश्य हैं...
-पुलिस बाजार में जा कर कोई मूर्ति खरीद लो फिर करो। शुरू करो पूजा...पाठ....
-नहीं अभी नहीं...जब तक "आई ए एस" न बन जाऊं पूजा नहीं करूंगा...जानते हो जब सारिका अग्रवाल को चेम्बर में बैठे देखता हूँ....बाहर गोल्डेन प्लेट में "आई डी एस" देखता हूँ तो मन की तरंगें उद्वेलित हो जातीं हैं....पैसा नही !! दोस्त -इज़्ज़त चाहिए....!
-कहाँ इज़्ज़त मिलेगा बे तुमको...ये बताओ हम आज तक इज़्ज़त दिए तुमको...चलो तुम्हें रामायण सुनाते हैं....
मैंने गाना शुरू किया...
शीतल हवा , मध्यम धूप ऐसा लग रहा था कि हम क्यों शहरों की भीड़ में खो रहे हैं...उसके नेत्र बन्द, स्वास मंद थे..चेहरे पर अपूर्व तेज के साथ वह ध्यान की गहराई में समा गया...
ध्यान का संक्रमण मुझे भी लगा और मैं भी डूब गया...पता नहीं कितने समय तक हम दोनों डूबे रहे...फिर एक आवाज़ के साथ मेरा ध्यान भंग हुआ....
-क्या मंडल प्रमुख निम्न कोटि का जीवन व्यतीत कर रहें हैं....मैं तो उन्हें अत्यंत आदरणीय समझती थी...
अब उन्हें पद त्याग करना होगा...
मैंने उसे झक झोरते हुए कहा...क्या हुआ बे!! ये पुरुष से स्त्री कब बन गए...हे पीन पयोधरे!!! सेब जैसे गालों वाले !मेरी!हिरण्यवरिणी...चकोरी....उठो और पुरूष हो जाओ!!
वह शांत बना रहा...गंभीरता का आवरण गहराता जा रहा था...वह मेरी ठिठोली पर बिल्कुल न हँसा... क्या वह बोधिसत्व को प्राप्त हो गया था....वह धीर उद्धत - ललित कोटि का युवक धीर प्रशांत क्यों हुआ जाता था...
शेष अगले अंक में...
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मित्रों आज से मैं नित्य श्री राम जी की सेवा में श्रीरामचरितमानस का पाठ करूँगा.. केवल 5 मिनट... आप मेरे चैनल को सब्सक्राइब कर लें...देखने की बाध्यता नही है आप इसे चला कर सुन भी सकते हैं साथ मे और काम भी करते रहें...लेकिन आइये श्री सीताराम जी युगल सरकार के चरणों में नित्य 5 मिनट दे कर अपने जीवन को धन्य करें...आप जैसा करेंगे आपके बच्चों के भीतर भी वैसा ही संस्कार जाएगा...
मित्रों हमे वापस अपने शाश्वत माता पिता के पास ही जाना है...इस संसार से सब कुछ छूटने ही वाला है...तो हम बुढ़ापे की आशा क्यों देखें -जब इंद्रियां शिथिल पड़ जाती हैं...! आज तन में शक्ति है तो साधना में लगें!!