क्या भूलू क्या याद करूँ
, क्या खोया क्या पाया
किसका सम्मान किसे बदनाम
करूँ , जब अपनों ने ही ठुकराया
थोड़ी कोशिस की थी मछुआरे
ने जब लहरों से टकराया था
पतवार चलाकर हिम्मत की
लहरों का रुख मुड़ आया था
आज समुन्दर की बेरहमी में
न मछुआरा है न पतवार
इंतज़ार नहीं अब तिनके का
, न अपने साहस का एतबार
न है किनारा न है ठिकाना , न उस अपनेपन का साया
क्या भूलूं क्या याद करूँ , क्या खोया क्या पाया ........