जो स्वयं जलता उसे अंगार देकर क्या करोगे ?
लिख रहा जो आंसुओं से स्वयं की बीती कहानी।
याद बनकर रह गई जो एक धुंधली सी निशानी।।
उस व्यथित को तुम व्यथा का भार देकर क्या करोगे ?
जो स्वयं जनता उसे.....
भेद पाया जो ना अपने तीर से अपना निशाना।
छोड़ कर नौका पुलिन पर चाहता जो पार जाना।।
उस अभागे को प्रणय पतवार देकर क्या करोगे ?
जो स्वयं जलता उसे......
समय को जिसने यहां पर स्वयं से विपरीत पाया।
जो न जग को जानता ना जग जिसे पहचान पाया ।।
उस अपरिचित को हृदय उपहार देकर क्या करोगे ??
जो स्वयं जलता उसे......