भारत देश का भविष्य सही अर्थों में बालिकाओं पर ही निर्भर है। क्योंकि ये बालिकाएं ही संस्कारी और शिक्षित भविष्य प्रदान करती है। कहा जाता है कि किसी भी इंसान की प्रथम गुरु उसकी मां ही होती है। यदि मां संस्कारी और शिक्षित है तो उसकी संतान भी शिक्षित और संस्कारी ही होगी। भारत के इतिहास में अनेकों ऐसी महिलाओं की कथाएं पढ़ने सुनने में आती है जिन्होंने भारत का हमेशा मान बढ़ाया है।
लड़कियों में ईश्वर प्रदत्त दो बड़े गजब के गुण विद्यमान है:-
1. लड़कियों में स्वयं को अनुकूलित करने की गजब क्षमता होती है।
2. लड़कियां हमेशा हृदय प्रधान होती है, वो दिमाग से कम और दिल से ज्यादा काम लेती है।
लड़कियां माहौल के अनुसार खुद को अनुकूलित करने में माहिर होती है। उन पर घर, परिवार, समाज, स्कूल के माहौल का सीधा प्रभाव पड़ता है। घर - परिवार की जिम्मेदारियों के बोझ को भी बड़ी जल्दी संभालने में सक्षम हो जाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लड़कियां 10 वर्ष की आयु से ही परिवार की एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में उभर कर आ जाती है। घर के छोटे मोटे काम, परिवार के सदस्यों का ध्यान रखना, परिवार के हर सदस्य की आज्ञा का पालन करना, उसके साथ साथ अपनी पढ़ाई और स्कूल के कार्यों को भी मैनेज करना आदि आदि बहुत कुछ देखने सुनने में आता है।
घर का जैसा माहौल होता है उसी अनुसार वो खुद ब खुद ढल जाती है। इसलिए बुजुर्ग लोग कहते है कि लड़की की बातचीत और उसके व्यवहार से उसके परिवार के संस्कार, अनुशासन और माहौल का पता लगाया जा सकता है। लड़कियों का शिक्षित और संस्कारी होना परम आवश्यक है।
सभी अभिवावको को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वो अपनी बालिकाओं को उचित माहौल प्रदान करने का प्रयास करें। यदि हम लोग अपने बच्चो से प्रेमपूर्ण व्याहार नही करते है, हमेशा उन पर क्रोध या चिड़चिड़े स्वभाव में बात करेंगे तो उन पर भी यही प्रभाव पड़ेगा।
उम्र के बहाव में कभी कभी लड़कियां कुछ गलत रास्ते पर चली जाती है, लड़कों के बहकावे में आकर प्यार के चक्कर में पड़ जाती है। देखा जाए तो वहां पर गलती लड़कियों की नही होती क्योंकि वो हृदय प्रधान होती है। कोई भी उन्हें भावनात्मक रूप से पथभ्रष्ट कर सकता है, अभी बता चुके है कि वो दिमाग से नही दिल से काम लेती है। जब बही बहकी हुई लड़की अपने मां बाप के द्वारा समझाई जाती है कि बेटा इस घर की, परिवार की, समाज की, इज्जत हो तुम, तुम्हारा एक गलत कदम परिवार की इज्जत और मर्यादा पर भारी पड़ सकता है, तो वो अपने गलत कदमों को रोक लेती है, संभाल लेती है अपने को, बचा लेती है अपने घर और परिवार की इज्जत तब वही लड़की उस लड़के के लिए बेवफा हो जाती है जिसने उसे बहकाया था।
अब जरा सोचिए, वो लड़की जो अपने मां बाप और अपने परिवार की खातिर अपने प्यार को ठुकरा दे, साथ में जीने मरने की कसमों को तोड़ दे, वो बेवफा हो सकती है ???
देखा जाए तो गलती उनकी नही है, ये परिणाम है अभिवावकों की लापरवाही का, ये असर है संस्कार हीन शिक्षा का, ये परिणाम है गलत संगति का और इन सब के लिए कही न कही कोई कोई न कोई तो जिम्मेदार है।
ऐसी स्थिति में हमने लोगो को कहते हुए सुना है कि माहौल खराब है। ये माहौल है क्या?? कभी इस पर विचार किया है ??
ये माहौल है हम सब जिम्मेदार लोगों का व्यवहार, चाल चलन, और संकीर्ण मानसिकता। इतिहास इस बात का गवाह है कि प्राचीन समय में ऐसी घटनाएं होती थी तो पूरे समाज द्वारा उन्हें सजा देने का प्रावधान था। उस समय कोई भी गलती करता था तो उसे समझाया जाता था, कोई अपराध होने पर सजा दी जाती थी। अब समाज के प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है, क्योंकि अब वो एकता नही रह गई है। यही कारण है माहौल खराब होने का।
अब एक लड़का यदि किसी लड़की को छेड़ता है तो कोई भी जिम्मेदार इंसान उसे नही टोकता है, देख लेता है, नजर घुमा लेता है, हट जाता है। कुछ तो ऐसे भी जिम्मेदार लोग देखे है जो उन्हें डांटने के बजाय उनका suport करते है। ऐसे जिम्मेदार लोग हमारे समाज के लिए कैंसर के समान खतरनाक रोग होते है।