घर से घबराकर उपवन में आए हम ।
पाया फूलों में अपने से ज्यादा गम ।।
कुछ मुरझाए कुछ डाली से टूट चुके थे,
कुछ डाली से चिपके थे पर सूख चुके थे।
सुन रखा था फूल सदा ही मुस्काते है,
नही दुखों में अपना शीश झुकाते है।
शीश उठाकर जब हमने ऊपर को देखा,
थी सूरज के माथे पर कुछ गम की रेखा।
सुन रखा था सूरज है तेजस्वी राजा,
उसके आसान पर न कोई और विराजा।
किंतु अचानक सूरज को मेघों ने घेरा,
पूरे नभ पर अपना ही अधिकार बिखेरा।
उसी शाम ढलते सूरज ने मुझे बताया,
एक दिन जीवन में ऐसा भी आएगा।
हो जाएगा क्षीण अहम तेरे यौवन का,
तू भी मुझसा शक्तिहीन हो जायेगा।
जब मैंने शशिकर को देखा रातों में रोते,
सारी दुनियां के गम को कंधों पर ढोते।
जीवन है सुख दुख का एक अजीब झमेला,
है कौन यहां पर जिसने सुख दुःख नहीं है झेला।
लेकर नई आस उपवन से बाहर आए,
और नही कभी जीवन में दुःख से हम घबराए।।
-- महेन्द्र पाल सिंह