मैने देखा जगत का अजब रूप है,
दो तरह के है इंसान संसार में।
कोई खोया चमक में है धन रूप की,
कोई खोया है निस्वार्थ ही प्यार में।।
एक तरफ धूप में जल रहा है कोई,
एक तरफ ठंडी छावों का विस्तार है।
कोई जीते किसी को हर एक मोड़ पर,
हर कदम पर किसी की सदा हार है।।
कोई खंडहर को ही अपना घर मानता ,
कोई खुश है महल और मीनार में।।1।।
मैने देखा जगत का अजब रूप है.…..
मंजिल को तरसे निगाहें कोई,
कोई पाता विजय है हर एक रह में।
जिंदगी में सदा मुस्कुराता कोई,
कोई जीवन बिताए सदा आह में।।
लग रहे शूल पग में किसी के कहीं,
रूप खिलता किसी का सुमनहार में ।।2।।
मैने देखा जगत का अजब रूप है.....
कोई मिटता रहा सिर्फ धन के लिए,
कोई सब कुछ किसी पर लुटाता रहा।
कोई ऐसा गिरा जो कि उठ न सका,
कोई गिरते हुए को उठता रहा।।
वक्त खो देता है रंग और रूप को,
प्यार रहता अमर सारे संसार में ।।3।।
मैने देखा जगत का अजब रूप है,
दो तरह के है इंसान संसार में ।।
- महेंद्र पाल सिंह