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लघुकथा : परछाई / ख़लील जिब्रान

3 मार्च 2016

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जून के महीने का एक प्रभात था। घास अपने पड़ोसी बलूत वृक्ष की परछाई से बोली, ‘‘तुम दाएं-बाएं झूल-झूलकर हमारे सुख को नष्ट करती हो।’’ परछाई बोली, ‘‘अरे भाई, मैं नहीं, मैं नहीं ! जरा आकाश की ओर देख तो। एक बहुत बड़ा वृक्ष है जो वायु के झोकों के साथ पूर्व और पश्चिम की ओर सूर्य और भूमि के बीच झूलता रहता है।’’ घास ने ऊपर देखा तो पहली बार उसने वह वृक्ष देखा। उसने अपने दिल में कहा, ‘‘घास! यह मुझसे भी लम्बी और ऊंची-ऊंची घास ही तो है।’’ और घास चुप हो गई।

 
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रचनाएँ
khaleelzibran
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खलील जिब्रान की कुछ चयनित लघुकथाएँ...
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ख़लील जिब्रान / परिचय

2 मार्च 2016
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लेबनानीमहाकवि एवं महान दार्शनिक खलील जिब्रान (1883–1931) का साहित्य–संसार मुख्यतया दो प्रकारों मेंरखा जा सकता है, एक : जीवन–विषयक गम्भीर चिन्तनपरक लेखन, दो : गद्यकाव्य,उपन्यास, रूपककथाएँ आदि। मानव एवं पशु–पक्षियों के उदाहरण लेकर मनुष्य जीवन का कोई तत्त्व स्पष्टकरने या कहने के लिए रूपककथा, प्रतीककथा

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कहानी : सागर-कन्याएँ / ख़लील जिब्रान

2 मार्च 2016
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सूर्योदय(पूर्व) के समीपस्थ द्वीपों को सागर की गहनतम गहराई आवृत किये हैं। लम्बे सुनहलेबालों वाली सागर-कन्याओं से घिरा एक युवक का मृत शरीर मोतियों पर पड़ा था। संगीतमयमाधुर्य के साथ आपस में वार्तालाप करती हुई वे कन्याएँ अपनी नीलाभ पैनी दृष्टि सेटकटकी लगाकर उस लाश को देख रही थीं। गहराइयों द्वारा सुने गय

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कहानी : तूफान / ख़लील जिब्रान

2 मार्च 2016
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यूसूफअल-फाख़री की आयु तब तीस वर्ष की थी,जब उन्होंने संसार को त्याग दियाऔर उत्तरी लेबनान में वह कदेसा की घाटी के समीप एक एकांत आश्रम में रहने लगे।आपपास के देहातों में यूसुफ के बारे में तरह-तरह की किवदन्तियां सुनने में आतीथीं। कइयों का कहना था कि वे एक धनी-मानी परिवार के थे और किसी स्त्री से प्रेमकरने

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लघुकथा : आवारा / ख़लील जिब्रान

3 मार्च 2016
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मैंउसे चौराहे पर मिला। वह एक अपरिचित व्यक्ति था; जिसके हाथ में लाठी, शरीर पर एक चादर और चेहरे पर एक अथाह दर्द का अज्ञेय परदाथा। हमारे इस मिलन में गरमी और प्रेम था। मैंने उससे कहा, ‘‘मेरे घर पधारिए और मेरा आतिथ्य स्वीकार कीजिए।’’ और वह मेरे साथ हो लिया। मेरी पत्नी और बच्चे हमें द्वार परही मिल गए। वे

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लघुकथा : तीन चीटियाँ / ख़लील जिब्रान

3 मार्च 2016
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एकव्यक्ति धूप में गहरी नींद में सो रहा था। तीन चीटियाँ उसकी नाक पर आकर इकट्ठीहुईं। तीनों ने अपने-अपने कबीले की रिवायत के अनुसार एक दूसरे का अभिवादन किया औरफिर खड़ी होकर बातचीत करने लगीं। पहली चीटीं ने कहा, “मैंने इन पहाड़ों और मैदानों से अधिक बंजर जगह और कोई नहींदेखी।” मैं सारा दिन यहाँ अन्न ढ़ूँढ़त

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लघुकथा : परछाई / ख़लील जिब्रान

3 मार्च 2016
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जूनके महीने का एक प्रभात था। घास अपने पड़ोसी बलूत वृक्ष की परछाई से बोली, ‘‘तुम दाएं-बाएं झूल-झूलकर हमारे सुखको नष्ट करती हो।’’ परछाई बोली, ‘‘अरे भाई, मैं नहीं, मैं नहीं ! जरा आकाश की ओर देख तो।एक बहुत बड़ा वृक्ष है जो वायु के झोकों के साथ पूर्व और पश्चिम की ओर सूर्य औरभूमि के बीच झूलता रहता है।’’ घ

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