लक्ष्य जब तक ना मिले पथ में पथिक विश्राम कैसा।
लक्ष्य विहीन जीवन तिमिर से भी ,अधिक है गहरा
तम का नाश करके तू
रवि की किरणों साथ चमक
कालिमा को नष्ट कर
पग पग बढ़ाता चल
लक्ष्य माना दुर्गम है पाना भी हम जानते हैं।
डगर जरा कठिन सही,
राह के शू लो को हम फूल ही तो मानते हैं।
कर अपना इरादा बुलंद हस्त को आगे बढ़ा
लक्ष्य तेरा मिल गया मुस्कुरा के पास जा
पग आगे बढ़ाता जा अब यहां विराम कैसा
स्वप्न तेरा सत्य हो
पथ में पथिक विश्राम कैसा प्रगति का नाम जीवन
पग पग बढ़ाता जा, बढ़ाता जा।