जिसका न कोई मोल है
जीवन से भी अनमोल है,
मां के सिवा कौन है, मां के सिवा कौन।
नौ माह पीड़ा सहे
कोख में वह रखें।
फिर वो हमको जन्म दे पालन पोषण भी करें।
प्रथम गुरु बन के वो ढाल की तरह चले।
धूप भी न लगने दें अपने आंचल की छांव से, अनंत प्रेम हमको दे।
चंद्रिका समान है, वसुंधरा सी सहनशीलता, गंगा की पवित्रता उसमें अपार है।
वात्सल्य का स्वरूप वो, अन्नपूर्णा का रूप वो मां का एहसास हीअमूल्य उपहार है।
हलाहल पान कर सुधा हमको दे दे वो,
कांटो को हटाकर फूलों को बिछा दे वो
मां के ऋण को ना कोई चुका सका, चुका सका।
अद्वितीय जो रूप हैं प्रेम का स्वरूप है ।
अहिल्या सा न्याय दे, यशोदा सा दुलार दे,
क्षमादान उसका काम है।
मां तो मां है मां के सिवा कौन है।
जिसका न कोई अंत है, जन्नत सा जिसका संग है।
जिसके पास मां नहीं उसका अर्थ व्यर्थ है।
कद्र हमारी जो करें गोद में सुला के वो
अमृत रूपी स्नेह से जो हमको आच्छादित करें।
संग सदा बना रहे,
हस्त मस्तक पर सजा रहे।
कितना भी लिखो इसके लिए कम है, कम है।
मां तू है तो हम हैं।
जीवन का वरदान जो मां के सिवा कौन है मां तुझे प्रणाम है ,मां तुझे प्रणाम है।
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