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लोभ से अँधा

2 जून 2015

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किसी नगर में एक दृष्टिहीन बाबा रहता था। उसकी आवाज बेहद सुरीली थी। एक बार एक अमीर ने उसके गायन से खुश होकर उसे कुछ गिन्नियां उपहार में दी। बाबा ने गिन्नियों की पोटली को अपनी कमर से बांध लिया। ठगों को जब उस बाबा के पास गिन्नियां होने के बारे में पता चला तो वे उसके पास पहुंचे और बोले - ' हमारे धन्य भाग्य जो आप जैसे संत पुरुष के दर्शन हुए। आप हमारे यहां भोजन करें।"बाबा तैयार हो गया। उन्होंने बड़े प्रेम से बाबा को भोजन कराया और दक्षिणा में एक सोने का एक सिक्का भेंट किया। यह क्रम तीन दिन तक चला। तीसरे दिन ठगों ने बाबा से कहा - 'हम तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं। हमारा व्रत है कि हम किसी संत को भोजन कराकर और स्वर्ण मुद्रा का दान देकर ही आहार ग्रहण करते हैं। हम चाहते हैं कि आप भी हमारे साथ चलें, ताकि हमें प्रतिदिन आपके दर्शनों का लाभ मिले और हमारे नियम की पूर्ति भी होती रहे।" बाबा उनकी मीठी-मीठी बातों में आ गया।ठगों ने एक रथ तैयार कराया और बाबा का अपने साथ बिठाकर वहां से रवाना हो गए। रास्ते में एक जगह पहुंचकर ठगों ने बाबा से कहा - 'बाबा, पर्वतों व घाटियों से होता हुआ यह रास्ता बहुत घुमावदार व ऊबड़-खाबड़ है। यहां से एक सीधी पगडंडी गांव तक जाती है। रथ इस पगडंडी से नहीं जा सकता। आप भी ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर परेशान हो जाएंगे। अत: आप इस पगडंडी से गांव पहुंचें। शाम को हम सब वहां मिल ही जाएंगे।"बाबा तैयार हो गया। तब ठगों ने उससे कहा - 'बाबा, कोई जोखिम वाली वस्तु अपने साथ न ले जाएं। जंगल में कोई चोर-उचक्का आपको लूट भी सकता है।" बाबा का अब तक उन ठगों पर पूर्ण भरोसा जम चुका था। उसने गिन्नियों से भरी वह थैली उन ठगों के हवाले कर दी और उनके बताए रास्ते पर चल पड़ा। थोड़ी दूर चलने पर उसे एक व्यक्ति की आवाज सुनाई दी - 'बाबा, आगे मत बढ़ो। आगे गहरी खाई है।"बाबा ने सोचा कि वह कोई चोर-उचक्का है। लिहाजा उसकी बात अनसुनी कर बाबा आगे बढ़ गया। मगर थोड़ी दूर जाकर ही वह गहरे गड्ढे में गिर गया। राहगीर ने दौड़कर जैसे-तैसे उसे बाहर निकाला। अब बाबा को सारा माजरा समझ में आया। वह कराहते हुए बोला - 'आदमी आंखों से नहीं, लोभ से अंधा हो जाता है। उन ठगों की ओर से रोज मिलने वाली स्वर्ण मुद्राओं के लोभ ने मेरे मन की रोशनी समाप्त कर दी और मेरी यह दुर्गति हुई।

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